बुन्देलखण्ड का एक ऐसा थाना जहाँ किसान-मजदूरों को दी जाती थी फांसी
मानिकपुर /चित्रकूट
पहले मैं सोंचा करता था की भगत सिंह जैसे लोग हमारे चित्रकूट में क्यों नही पैदा हुए? लेकिन मैं गलत था की क्योकि ऐसे लोग पैदा भी हुए हैं और भगत सिंह जैसी कुर्बानी भी दी है पर हमने उन्हें पहचाना नही । उन्हें फाँसी पर चढ़ते समय इतना दुःख नही हुआ होगा जितना की आज उनको भुला देने पर होगा । अगर मानिकपुर के पुराने थाने में शहीदों के लिए दिये जलाये गए होते तो आज पठानकोट में शहीद हुए जवानो की चिताएँ न जलानी पड़ती । वाकई जिन सपूतों ने देश की स्वतन्त्रता के खातिर हँसते हँसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया आज हम उन शहीदों के ऐतिहासिक स्थलों को भी सहेज पाने में असमर्थ हैं । आये दिन समाचार के माध्यम से ये खबरे सामने आती हैं की भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद,सुखदेव जैसे देश के सपूतों के जन्मस्थल से लेकर ऐसे स्थान जहाँ से उन्होंने देश की आजादी के लिए हुंकार भरी , आज वो सभी स्थान भी सरकार के साथ साथ सामाजिक उपेक्षा के भी शिकार हैं । ये हाल तो लगभग सभी सपूतों के हैं पर कई स्थान ऐसे भी हैं जहाँ अंग्रेजों ने ऐसे कई हजार आम लोगो को फांसी पर लटका दिया क्योकि उन्हें भी गुलामी मंजूर नही थी ।
ऐसे स्थानों की तादाद काफी थी पर अंग्रेजों ने इसे तत्कालीन जेल का रूप दे रखा था । ऐसे ही अंग्रेजों के समय की जेल मेरे गृहनगर मानिकपुर में थी जो आज सरकार की उदासीनता के चलते लगभग धूल धूसरित हो गया है । इन्ही में से एक मानिकपुर ब्लाक संसाधन केंद्र के ठीक पीछे पड़ा खंडहर जो आज भी चींख-चींखकर अपने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले अमर शहीदों की याद दिलाता है। मेरा नगर मानिकपुर (चित्रकूट) जिला मुख्यालय से 30 किमी की दूरी पर है । हमारे नगर में स्वतन्त्रता संग्राम और उस समय के बहुत अवशेष जीवित हैं परन्तु मात्र खंडहरों के रूप में ,अगर अगले 2-3 साल तक इनकी देखरेख नही की गई तो ये धूल धूसरित हो जायेंगे । जानकारी इकठ्ठा करने के दौरान मुझे 1906 से 1909 ई. के बीच का नक्शा प्राप्त हुआ जिसका अध्ययन करने पर 684 नं. पर यह स्थान 'थाना मानिकपुर' के नाम से दर्ज है ।अर्थात् शुरुआती जांच पड़ताल से यह स्थान 100 साल से भी अधिक पुराना है । नगर के कुछ बुजुर्गो के अनुसार यहाँ 60 साल पूर्व थाने में ब्रिटिशो के द्वारा देशभक्तो को फाँसी दी जाती थी ।
जब मैंने इसकी हालत देखी तो मुझे बहुत दुःख हुआ यहाँ का हर कीमती सामान व् दस्तावेज लोहे से बने दरवाजे व् छड़ व् अन्य बेशकीमती सामान सरकार की उदासीनता के कारण चोरी हो गए । क्या शहीदों को ऐसा ही सम्मान मिलता रहेगा । पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश भक्तों के ऐसे शहीद स्थल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं ।इसके चलते इतिहास की बेशकीमती धरोहर के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है । जिले के इक्का दुक्का शहीदों की यादों के इस तरह के खजाने को लेकर शासन और प्रशासन की उदासीनता लोगो को परेशान करती है ।पुराने लोग बताते हैं की यहाँ पर देशभक्तों को अंग्रेज फाँसी देते थे । ब्लाक संसाधन केंद्र के पीछे खंडहरों में बिखरे अवशेष हमारे देशभक्तों की बहादुरी के किस्से बताते हैं ।पुराना मानिकपुर के बुजुर्गो से इसका जिक्र छेड़ने पर वे धुंधली यांदों में खो जाते हैं । 90 वर्षीय अयोध्या प्रसाद बताते हैं की वह जमाना निरंकुशता का था । हालांकि मानिकपुर के इस थाने के निरंकुश थानेदार जिसका नाम बृजमोहन था ,पर तब के जमींदार अंकुश रखते थे ।उन्होंने बताया की थानेदार पेड़ से लटकाकर देशभक्तों को फाँसी देता था और इसको रजिस्टर में दर्ज भी नही करता था ।
जब इसकी जानकारी जमींदार को होती थी तो बवाल भी हो जाता था । माताबदल बताते है की तब अंग्रेजों की सरपरस्ती में थानेदार और सिपाही पास के तालाब नहाने आने वाली महिलाओं से भी अभद्रता करते थे । जब ये बातें जमीदार को पता चली तो उसने गाँवों वालो को इकट्ठा किया और थानेदार को जमकर पीटा और बाहर निकाल दिया । माताबदल बताते हैं की शायद इसके बाद यहाँ से थाना दूसरी जगह स्थान्तरित भी कर दिया गया ।
एक बार जरूर सोंचिये की खंडहर हो रही इन ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में सरकार का ध्यान कभी गया हो !सरकार के पास सौ काम है फिर उसको दोष देना भी जायज नही । यह मामला सरकार के सामने प्रभावशाली ढंग से रखने का भी किसी ने कोई प्रयास किया ? हमारी वैभवशाली विरासत गर्त में जा रही है और हम आज भी इससे अंजान बने है । स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या किसी वीर सपूत के शहीद दिवस के मौके पर एक बार जरूर सोंचिये की कल कहीं आपके नाती-पोते ने कोई तस्वीर देखकर कहा की दादा-बाबा हमें इस जगह जाना है तो उनसे क्या यह कह पाएंगे की हमारे नकारेपन की वजह से अब इसका वजूद नही रह गया है । ऐसे में पुरातत्व विभाग को इस भवन को अपने कब्जे में लेकर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इसका विकास करना चाहिए ताकि ऐसे क्षेत्रों के नवयुवक शहीदों की कुर्बानी के सम्बन्ध में जान सके ।
एक बार जरूर सोंचिये की खंडहर हो रही इन ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में सरकार का ध्यान कभी गया हो !सरकार के पास सौ काम है फिर उसको दोष देना भी जायज नही । यह मामला सरकार के सामने प्रभावशाली ढंग से रखने का भी किसी ने कोई प्रयास किया ? हमारी वैभवशाली विरासत गर्त में जा रही है और हम आज भी इससे अंजान बने है । स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या किसी वीर सपूत के शहीद दिवस के मौके पर एक बार जरूर सोंचिये की कल कहीं आपके नाती-पोते ने कोई तस्वीर देखकर कहा की दादा-बाबा हमें इस जगह जाना है तो उनसे क्या यह कह पाएंगे की हमारे नकारेपन की वजह से अब इसका वजूद नही रह गया है । ऐसे में पुरातत्व विभाग को इस भवन को अपने कब्जे में लेकर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इसका विकास करना चाहिए ताकि ऐसे क्षेत्रों के नवयुवक शहीदों की कुर्बानी के सम्बन्ध में जान सके ।
इसके आलावा भवन को शहीद स्थल के रूप में घोषित करते हुए यहाँ से चोरी हुई सामग्री बरामद की जाये । मेरे सुझावनुसार मोदी सरकार को 'शहीद विभाग' का गठन करना चाहिए जो ऐसे शहीद स्थलों को खोजे ,उनकी मरम्मत कराये ,विचार गोष्ठीयां कराये !पूरे देश में एक ऐसा आंदोलन बन जाये जहाँ शहीदों की कुर्बानी को वाकई में महसूस किया जाये। मेरा दावा है की सदियों से देश में इसी बात की कमी थी की हमने शहीदों को सम्मान नही दिया । इस स्थान को शहीद स्थल घोषित करने हेतु मानिकपुर विकास ने मोर्चा ने कई बार डीएम , कमिश्नर ,विधायक और सांसद को पत्र देकर सूचित किया लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नही हुई । अभी हाल ही में संगठन ने उप्र सरकार के कैबिनेट मंत्री को इस बाबत पत्र सौंपा था लेकिन निराशा ही हाथ लगी ।
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