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Showing posts from January, 2016

आर्थिक विकास की होड़ में दयनीय होती ग्रामीण भारत की तस्वीर

आजादी के बाद पहली बार करवाई गई सामाजिक,आर्थिक और जाति आधारित जनगणना 2011 की शुक्रवार को जारी की गयी नई रिपोर्ट में आर्थिक विकास की होड़ में शामिल भारत के ग्रामीण इलाकों की बेहद दयनीय तस्वीर उभरकर सामने आई हैं ।   आंकड़ो के मुताबिक आजादी के सात दशक बाद भी ग्रामीम क्षेत्र की आधी से अधिक आबादी अब भी खेतिहर मजदूर है । उन्हें साल भर की बजाय सिर्फ फसलो में ही काम मिलता है ।इतना ही नही 5.37 करोड़ यानी 29.97 फीसदी परिवार भूमिहीन हैं और मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं । विशाल ग्रामीण आबादी में महज ढाई करोड़ लोग ही सरकारी ,सार्वजनिक क्षेत्र या निजी यानी की संगठित क्षेत्र में नौकरी करते हैं । आंकड़ो की माने तो 2.37 करोड़ परिवार एक कमरे के कच्चे मकान में रहते हैं और 4.08 लाख परिवार कूड़ा बीन कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं । स्थिति तब और बदतर दिखती है जब आंकड़ें बताते हैं की 11% ग्रामीण परिवार दयनीय स्थिति में जीवन जी रहे हैं और 6.68 लाख लोग भीख मांगकर अपना परिवार चलाते हैं । ये सारे आंकड़े 2011 की जनगणना पर आधारित हैं पर एक सच्चाई ये भी है की ठीक 80 साल के बाद इस बार देश में कराइ गयी जाति आधारित जनग

2016 के वेलकम से पहले इन 'खास' लोगों से मिलिए…

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समय  कभी नही ठहरता, बल्कि हमेशा गतिशील रहता है और इसी कारण इसके बीतते एक-एक लम्हे के साथ हमारा जीवन भी मुट्ठी में भरी रेत की तरह फिसलता जाता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो वक्त के साथ बदलते चले जाते हैं, मगर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो वक्त को अपने कर्मों से बदल देते हैं, इतिहास की धारा को नया मोड़ देते हैं, जो लोग इतिहास को बदलने की क्षमता रखते हैं, इतिहास उन्हें ही याद रखता है। अब जबकि वर्ष 2015 हमसे विदा ले रहा है हम कुछ ऐसी ही हस्तियों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने वक्त की रेत पर अपने कदमों की दमदार छाप छोड़ी है, जिन्हें याद किए बिना हमारा नये वर्ष में प्रवेश कुछ अधूरा सा लगेगा, इसलिए आइए एक झलक डाले उन महान व्यक्तित्वों पर, जिन्होंने इस बीते हुए साल में अपनी दमदार उपस्थिति से सबके दिलो दिमाग में अपनी जगह बनाई। अटल बिहारी बाजपेयी -  भारतीय राजनीति के सबसे सफल और सबके प्रिय (विपक्षियो के भी) नेता अटल बिहारी वाजपेयी को इस वर्ष देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया। वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में थे, और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक थे। उन्होंने ही दे

बॉलीवुड : बॉक्‍स ऑफिस से आए ये चौंकाने वाले आंकड़े, दिग्‍गज सितारे पसीना-पसीना

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बॉलीवुड में कितने ही बड़े और सफल सितारे  रहे हों, उनकी असली परीक्षा बॉक्‍स ऑफिस पर ही होती है और वह भी फिल्‍मों में लगाई लागत से ज्‍यादा पैसा कमाने के रूप में । यदि करोड़ो खर्च किए और उतने भी नहीं निकले तो कितना ही बड़ा सितारा हो वह असफल ही कहा जाता है, और निर्माता फिर उस सितारे पर पैसा लगाने से पीछे हटते हैं। साल 2015 ऐसी फिल्‍मों का रहा, जिसमें बहुत पैसे वाली फिल्‍मों ने जो कमाई की है वह लगभग घाटे का सौदा रही ,जबकि कम लागत में बनीं फिल्‍मों ने बंपर बिजनेस किया। कमाल है कि साल के अंत में फिल्‍मों के पैसे कमाने और बजट के हिसाब से बिजनेस करने की जो आंकड़े आए हैं, उसने दिग्‍गजों की नींद उड़ा दी है। वैसे देखा जाए तो इस साल मनोरंजन की दुनिया में काफ़ी धूम-धड़ाका रहा। बॉलीवुड की कुछ नामी फ़िल्मों ने दर्शकों के दिलोदिमाग़ पर गहरी छाप छोड़ी। कुछ फ़िल्में बढ़िया अदाकारी और निर्देशन की वजह से कामयाब रहीं, तो कुछ अपनी स्क्रिप्ट और कहानी के 'प्लॉट' से जुड़े विवाद के ज़रिए। कहने को बॉलीवुड में इस साल 150 से भी अधिक फ़िल्‍में रिलीज हुईं, पर सफलता का स्वाद कुछ ही चख पाईं।  बॉलीवुड में

शहीदों के स्‍मारक की इस दुर्दशा पर शर्मसार होंगे आप, अब बस मोदी से ही उम्‍मीदें..

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पहले मैं सोचा करता था की भगत सिंह जैसे लोग हमारे चित्रकूट में क्यों नही पैदा हुए? लेकिन मैं गलत था की क्योंकि ऐसे लोग पैदा भी हुए हैं, और भगत सिंह जैसी कुर्बानी भी दी है पर हमने उन्हें पहचाना नहीं। उन्हें फांसी पर चढ़ते समय इतना दुःख नहीं हुआ होगा जितना की आज उनको भुला देने पर होगा। अगर मानिकपुर के पुराने थाने में शहीदों के लिए दीपक जलाये गए होते तो आज पठानकोट में शहीद हुए जवानो की चिताएं न जलानी पड़तीं।  वाकई जिन सपूतों ने देश की स्वतन्त्रता के खातिर हंसते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया आज हम उन शहीदों के ऐतिहासिक स्थलों को भी सहेज पाने में असमर्थ हैं। आए दिन समाचार के माध्यम से ये खबरे सामने आती हैं की भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव जैसे देश के सपूतों के जन्मस्थल से लेकर ऐसे स्थान जहां से उन्होंने देश की आजादी के लिए हुंकार भरी, आज वो सभी स्थान भी सरकार के साथ साथ सामाजिक उपेक्षा के भी शिकार हैं। ये हाल तो लगभग सभी सपूतों के हैं, पर कई स्थान ऐसे भी हैं, जहां अंग्रेजों ने ऐसे कई हजार आम लोगो को फांसी पर लटका दिया क्योकि उन्हें भी गुलामी मंजूर नहीं थी। ऐसे स्थानों की तादाद काफ

विवेकानंद जयंती विशेष : युवाओं के प्रेरणास्‍त्रोत और महान विरासत के अग्रदूत..

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स्वामी विवेकानंद जी आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। विवेकानंद दो शब्दों द्वारा बना है। विवेक+आनंद। विवेक संस्कृत मूल का शब्द है। विवेक का अर्थ होता है बुद्धि और आनंद का शब्दिक अर्थ होता है- खुशियां। "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए" का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रो‍त, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में हुआ। इनके जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमुख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। उनके लिए प्रेरणा का एक उम्दा स्त्रोत साबित हो सकते हैं। सन् 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था 'जगत में ब

यदि IIT में प्रवेश लेने का सपना लेकर कोटा जाना चाहते हैं, तो पहले पढ़ लें ये खबर..!

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देश  के प्रतिष्‍ठित तकनीकी संस्‍थान आईआईटी में प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए राजस्‍थान स्‍थित कोटा अपने बेहतरीन कोचिंग संस्‍थानों की वजह से पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां केवल राजस्‍थान ही नहीं बल्‍कि पूरे देश से छात्र 12 वीं के बाद आईटीआईटी संस्‍थान में  प्रवेश पाने का सपना लिए आते हैं और मेहनत कर अपना सपना पूरा करते हैं। लेकिन इसी कोटा को जाने किसकी नजर लग गई है कि पिछले पांच सालों में यहां तकरीबन 72 छात्रों ने आत्‍महत्‍या की है, जबकि इसी साल 24 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं, और यदि आज की बात करें तो कल ही एक और छात्र आत्‍महत्‍या कर चुका है यानी की यह संख्‍या लगातार बढ़ रही है। बहरहाल, हालिया दिनों में आई रिपोर्ट की माने तो पिछले पांच सालों में कुल 72 छात्रो ने केवल इसलिए आत्महत्याएं की क्योकि वो अच्छे संस्थानों में दाखिले को लेकर बहुत ज्यादा दवाब और अपने अभिभावकों की आशाओं पर खरे नही उतर पा रहे थे , जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा। अभी कुछ दिनों पहले इन्डियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार ने जब इसकी तह तक जाने का प्रयास किया तो बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट

बुंदेलखंड के हालात चिंताजनक, रोजी के लिए ये कर रहे किसान, लाखों का पलायन, गांव खाली..!

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पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से बुंदेलखंड के किसान आत्महत्या और सर्वाधिक जल संकट से जूझ रहे हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 (करीब चार हजार) किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सूखे की भीषण मार झेल रही बुन्देलखण्ड की बंजर धरती के किसान इस बार भी पहले सूखे और फिर हाड़तोड़ मेहनत के बाद तैयार फसल पर ओलों की बारिश से आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। पिछले 2 महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो, जब गांव से निकलती खबर में किसी किसान के आत्महत्या का मामला न आया हो। लाशो पर आंदोलन और सियासत का माहौल गर्म है, मगर उन गांव का हाल जस का तस है, जहां सन्नाटे को चीरती किसान परिवारों की चींखे सिसकियों के साथ हमदर्दी जताने वालों की होड़ में बार बार शर्मसार होती है। सूखे का आलम इतना विकराल है की अब यहां के किसान उसी छाते का प्रयोग अपने दो वक्त की रोजी रोटी के लिए कर रहे हैं, जिसका प्रयोग प्रायः लोग पानी बरसने पर अपनी शरीर ढंकने के लिए करते हैं। कुछ सालों पहले विश्वविख्यात जाबाजों की इस धरती के लोग भी बरसात में अपने शरीर को ढंकने के लिए छाते का प्रयोग करते थे, पर पिछले कई