#VisitMountAbu / चंद्रावती - "हजारों वर्ष पुराना ऐसा शहर जो आज भी जिंदा है...."



 आप कल्पना भी नही कर सकते हैं कि हजारो वर्ष पुराना एक ऐसा शहर भी है जो गांव के रूप में जिंदा है । यकीन करना मुश्किल है लेकिन ये एक ऐतिहासिक सत्य है । राजस्थान के छोटे से जिले सिरोही के नगर पंचायत आबू रोड से महज 6 किमी दूर स्थित है वर्तमान का चंदेला गांव । जी हां इसी गांव में हजारो वर्ष पूर्व परमार राजवंश का पूर्ण वैभव समेटे चंद्रावती शहर हुआ करता था । इतिहासकार मानते हैं कि वो समय परमार वंश के पूर्ण वैभव का समय था ।






मैं भी इतिहास का छात्र रहा हूँ जिस कारण जब भी कहीं
 घूमने जाता हूँ सबसे पहले ऐतिहासिक तथ्यों की खोज में लग जाता हूँ । इसी तरह जैसे ही मैं माउंट आबू की यात्रा में निकला दिमाग मे कई ऐतिहासिक तथ्यों से भरे स्थान अपनी कहानी बयां कर रहे थे । जैसे ही आबू रोड पहुँचे सबसे पहले चंद्रावती की तरफ ध्यान गया । फिर क्या माउंट आबू पर्वत चढ़ने से ही पहले बैग उठाया और निकला पड़ा उस शहर की तलाश में जिसका अस्तित्व हजारो वर्ष पहले हुआ करता था । लेकिन आज सिर्फ वहाँ खंडहर और टूटी फूटी मूर्तियां ही शेष हैं ।


चंद्रावती -
आबू रोड से 6 किमी. दूर चंद्रावती परमारों का शहर था। इसका वर्तमान नाम चंदेला है। परमार 10वी और 11वीं शताब्दी में अबरुदमंडल के शासक थे और चंद्रावती उनकी राजधानी थी। यह नगर सभ्यता, वाणिज्य और व्यापार का मुख्य केंद्र था। चूंकि यह परमारों की राजधानी था इसलिए सांस्कृतिक रूप से यह बहुत समृद्ध था। चंद्रावती तत्कालीन वास्तुशिल्प का बहुत अच्छा उदाहरण है। 1972 में सिरोही में आई बाढ़ से इसके कई अवशेष बह गए या टूट गए। बाद में उन्हें आबु संग्रहालय में सुरक्षित रख दिया गया। चंद्रावती की ख्याति का उल्लेख विमल प्रबंध सहित अन्य जैन साहित्यों में भी मिलता है। इस नगर के विनाश का मुख्य कारण अरबों के निरंतर आक्रमणों को माना जाता है।





चंद्रावती में ध्वस्त मंदिरों के इर्द-गिर्द कई पुरावशेषों का खजाना बिखरा पड़ा है। चंद्रावती में ही पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में भी कई बेशकीमती मूर्तियां रखी हुई है। इसकी रखवाली के लिए विभाग ने महज दो चौकीदार तैनात किए हुए है। इस पुरासम्पदा की सुरक्षा के लिए और सुरक्षाकर्मियों की दरकार महसूस की जा रही है।


पिछले दो वर्ष पहले खुदाई में किले में मकानों के तीन चरण के स्ट्रक्चर, किले का मुख्य प्रवेश द्वार, किले के बुर्ज खोले गए। खुदाई के दौरान, मिट्टी के बर्तन, बर्तनों के ढेर सारे ठीकरे, हडि्डयां, दांत, दाढ़, मिट्टी के तरह-तरह के खिलौने, अनाज के दाने, धातु की अंगूठी, चूना भट्टी आदि निकले। अब इनका लखनऊ व पुने की प्रयोगशालाओं में परीक्षण चल रहा है । स्थानीय शोधार्थियों के अनुसार जुटाई जानकारी का गहन अध्ययन किया जा रहा है ।


इस पुराने शहर के बारे में इतिहास को खंगालने पर भी बहुत ही सीमित जानकारी मिलती है । जानकारी के अनुसार , सन 1307 ईस्वी में महान शासक विजय राजजी ने चंद्रावती पर अधिपत्य स्थापित किया । ये नगरी पूर्व अरावली से पश्चिम में आबू तक थी इस विशाल नगरी में 999 झालर बजती थी बताते है की जिस शहर में 1000 मंदिर थे वो शहर कैसा होगा ! जब कोई इस शहर में रहने आता था तो राजा के आदेश पर प्रति घर से उसे एक ईंट और एक रुपया दिया जाता था जिससे वो अपने घर का निर्माण कर सके और वयवसाय कर सके 1392 ईस्वी सन में शिवभाण का राज्यारोहण हुआ और 1395 में गुजरात के सुलतान ने अति विशाल सेना से आक्रमण किया और चंद्रावती नगरी को पूर्ण ध्वस्त कर दिया यहॉ के देवड़ा शूरवीरता से लड़े परन्तु इस नगरी को नही बसा सके 1395 में आबू की गोद में राजा अमरीश की राजधानी अमरावती को अपनी राजधानी बनाई जो अपभ्रंश में उमरणी कहलाती है !


चंद्रावती के रेडवांकला की पहाडिय़ों में मंदिर में करीब बारह हजार साल पुराने शैल चित्र मिले है। 
                            {  Pillars of ruined Jain temple of 13th century at Chandravati, sketched in 1866 }

राजस्थान विद्या पीठ के प्रोफेसर जीवन खरकवाल के अनुसार चंद्रावती क्षेत्र में पहाडिय़ों पर बने मंदिर में बारह हजार साल पुराने शैन चित्र मिले है। साथ ही नीम का थाना राजस्थान महाविद्यालय के व्याख्याता को आदिम युग के लोगों द्वारा उपयोग में किए जाने वाले पत्थरों का उपकरण मिले है। इन उपकरणों का उपयोग शिकार करने के साथ विभिन्न कार्यो के लिए किया जता था। अलग-अलग कार्यो के लिए अलग-अलग उपकरण बनाए गए थे।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,

"चंद्रावती सभ्यता नौवीं से 14वीं शताब्दी के बीच विकसित हुई। 1982 में खुदाई में अमरनाथ का मंदिर निकला वहीं ऋषिकेश के मंदिर सहित कई प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों के मंदिरों के अवशेष मिले है। प्रसिद्ध इतिहास लेखक कर्नल टाड ने इस नगरी को देखा था और उन्होने इसके बारे में अपनी किताब वेस्टर्न इंडिया में इस भव्य नगरी के बारे में उल्लेख किया है। उन्होने भी अपनी किताब में इस सभ्यता के सबसे धनी और 999 मंदिरों के होने पर मुहर लगाई थी ।



 स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपनी हत्या से तीन महिने पहले माउन्ट आबू आकर इस सभ्यता का जायजा लिया था। मंदिरों के दीदार के बाद बेहद खुश हुई थी उन्होने तत्कालिन राज्यपाल ओपी मेहरा और मुख्यमंत्री शिवचरण माथूर को 8 जुलाई 1984 को निर्देश दिये थे कि इस सभ्यता को विकसित कराने के लिए हर मुमकिन प्रयास किये जाये । जाने माने इतिहासकार कर्नल टॉड 1922 में हिन्दुस्तान आये थे और उन्होने में भी यहॉ आकर सभ्यता कों जाचा परखा था और उन्होने अपनी किताब वेर्स्टन इंडिया में लिखा है कि उन्हे उस समय 20 मन्दिर जीवित मिले थे ।
चारों ओर पहाड़ से घिरे चंद्रावती के बारे में ये कहा जाता है कि अगर आप इनके पत्थरों को बजाएंगे उनमें जो आवाजे होती है। वह आरती की तरह होती है। यानी इन पत्थरों को अगर बजाया जाए तो उसके स्वर बिल्कुल आरती की तरह होते है। लोगों का ऐसा मानना है कि जो आवाजें होती है वह पुराने काल में होनीवाली आरती की वक्त की आवाजे है क्योंकि इन पत्थरों की आवाजों को आप सुने तो ऐसा लगता है जैसे घंटिया बज रही है।



ये पत्थर परमार वंश के दौरान निर्मित 999 मंदिरों में होनेवाली आरती की गवाह है। इसलिए कहा जाता है कि यहां चट्टानों में भी संगीत है यहां पत्थरों में भी घंटियों की खनक है"

इस ध्वस्त क्षेत्र के लिए ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने जब रेलमार्ग बिछाया था, तब यहाँ के उत्कीर्ण पत्थरों को पटरियों के नीचे बिछा दिया तथा अधिकांश मूर्तियों को तस्कर और चोर उठाकर ले गये। वर्तमान में चन्द्रावती के ध्वस्त टीलों में हमारी कला और संस्कृति की भावी सम्भावना नज़र आती है।। 




....यात्रा जारी है .. (अनुज हनुमत की कलम से )

Comments

  1. शानदार
    पत्रकारिता की दिशा में सकारात्मक कदम

    ReplyDelete
  2. Hello Sir, Bahut bdhia jankari . Sir chandrawati k bare me likhit source mil skte h plz reply me.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

आखिरकार दस्यु सम्राट ददुआ को मरणोपरांत मिल ही गया भगवान का दर्जा, मूर्ति हुई स्थापित

#Visit Mount Abu - विंध्य से अरावली की पहाड़ियों तक का सफर ...कुछ खास है