#बुन्देलखण्ड : चुनाव आते ही क्यों गायब हो जाता है अवैध खनन और किसानों-मजदूरों के पलायन का मुद्दा !

यूपी में सात चरणों में चुनाव हैं जिसमे अभी तक दो चरण के चुनाव सकुशक सपन्न हो चुके हैं । बुन्देलखण्ड में मतदान आने वाली 23 तारीख़ को है और यहाँ के तमाम सियासी सूरमा पूरी मेहनत के साथ अपनी अपनी जीत के लिये दिन रात एक किये हुए हैं । लेकिन इनकी मेहनत जनता के लिये कम और अपने सत्ता प्रेम के लिए ज्यादा दिखाई दे रही है तभी तो यहाँ के वास्तविक मुद्दे इस चुनाव में गायब दिख रहे हैं । कोई भी पार्टी कोई भी प्रत्याशी उन ज्वलन्त मुद्दों को उठा ही नही रहा जिसके कारण दशकों से बुन्देलखण्ड अपनी बदहाली पर रोने के लिए मजबूर है । यहाँ की सबसे बड़ी समस्याएं अवैध खनन एवं लोगों का लगातार हो रहा पलायन है जिसके कारण बड़े पैमाने पर यहां की खनिज संपदा बर्बाद की जा रही है जिससे प्रकृति को भी लगातार नुकसान हो रहा है । अवैध खनन के कारण हजारों करोड़ों के राजस्व की सरकार को चपत लग रही है । 
चित्रकूट में रम रहे, रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा परत है, सो आवत इही देश ।  रहीम की ये पंक्तियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सैकड़ो वर्ष पहले थी । चित्रकूट पर्यटन के लिहाज से बुन्देलखण्ड का एक अहम जिला है । यहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं लेकिन न तो कभी किसी सरकार ने इसके लिए प्रयास किये और न ही यहाँ के किसी जनप्रतिनिधि ने इसके लिए मजबूती से आवाज उठाई । आपको बता दें कि बुंदेलखंड अपनी भौगोलिक बनावट और स्थिति के लिहाज से भी विशेष है। उत्तर में गंगा का मैदानी भाग और दक्षिण में विन्ध्य पहाड़ियों के बीच बसे इस क्षेत्र में सिंध, बेतवा, टौंस,धसान, और चम्बल जैसी सदानीरा नदियां बहती हैं। फिर भी इसे विडंबना ही कहेंगे कि बुंदेलखण्ड प्यासा रहता है। 

आंकड़ों की मानें तो बुन्देलखण्ड का क्षेत्र बहुत गरीब एवं पिछड़ा है लेकिन ये आधा सच है । वाकई यहाँ 70% गरीबी और पिछडापन है लेकिन उसका कारण यहाँ के वो 20% लोग हैं जिन्होंने यहीं की खनिज सम्पदा को जमकर बारी बारी से लूटा ।  सिर्फ खुद ही नही लूटा बल्कि मेहमानों से लुटवाया भी । बड़ी बड़ी गाड़िया , कई मंजिला बड़े बड़े बंगले , खूब सारा रुपया ये सब यहाँ की बदहाली पर करारा तमाचा है । जब इतनी ही गरीबी और पिछड़ापन है तो फिर ये ऐशोआराम कहाँ से आता है ! शायद इसी का उत्तर है यहां हो रहा अवैध खनन ।  बाकि बचे 5% लोग तो मेहनत से भी ये सब अर्जित कर लेते हैं ।
अगर हम यहाँ की उसी सबसे बड़ी समस्या 'अवैध खनन' की बात करें तो देश की सबसे बड़ी ऑडिट संस्था कैग द्वारा जारी वर्ष 2014 और 15 की रिपोर्ट में भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आ चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों की मिलीभगत से बुंदेलखंड के ललितपुर, झांसी, जालौन, महोबा, बांदा और चित्रकूट जनपदों में खदानों से अवैध खनन कर शासन को करोड़ों रुपयों का चूना लगाया गया है। सबसे बड़ा घपला तो वैध खदानों से पट्टा पाए कारोबारियों ने किया है। खदानों से दस साल में बिना अनुमति के अरबों रुपयों का खनिज निकाल कर बेच दिया गया। इसकी रायल्टी भी अदा नहीं की गई। कई खदानों में बिना माइनिंग प्लान पास कराए करोड़ों रुपये के खनिज को ठिकाने लगा दिया गया।

गौरतलब है कि बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से से सालाना 510 करोड़ राजस्व 1311 खनन क्षेत्र के पट्टों से होता है । पूरे जनपद में गुंडा टैक्स (सिंडिकेट) वसूलने की जिम्मेदारी शासन द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को दी जाती है जिसकी शासन को करोड़ों की कीमत चुकाने के बाद हर वैध और अवैध खदानों से गुंडा टैक्स लेने का खेल शुरू हो जाता है। प्रति ट्रक 3.5 से 4 हजार रूपये गुंडा टैक्स वसूला जाता है जिसके चलते आम जनता जो बालू की कीमत दाम से दोगुनी तक चुकानी पड़ती है।

कैग की इन रिपोर्ट में सबसे हैरानी करने वाला तथ्य यह निकल कर सामने आया है, कि बुंदेलखंड के जिलों में अवैध खनन तो हो रहा है, लेकिन सबसे बड़ा गोरखधंधा वैध तरीके से पट्टा पाईं खदानों में हुआ है। वैध खदानों में पिछले दस सालों में अरबों रुपये का खनिज बिना अनुमति के निकाल लिया गया, इसमें अधिकारियों की मिलीभगत रही। किसी भी खदान के आवंटन के समय एमएम 1 प्रपत्र के जरिए खदान मालिक माइनिंग प्लान को स्वीकृत कराता है। माइनिंग प्लान में तय होता है कि खदान से कितना खनिज निकाला जा सकता है। बुंदेलखंड में माइनिंग प्लानों को धता बताते हुए अरबों रुपए का खनिज गैर कानूनी तरीके से निकाल लिया गया। ऐसा नहीं है कि संबंधित जिलों के खनिज विभाग को इसकी जानकारी नहीं हुई, क्योंकि बिना माइनिंग प्लान स्वीकृत हुए और माइनिंग प्लान में तय मात्रा से अधिक खनन होने के बाद भी परिवहन के लिए एमएम 11 प्रपत्र विभाग द्वारा जारी होते रहे हैं। इससे साबित होता है कि इस खेल में अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं।

कैग की रिपोर्ट वर्ष 2014 में बताया गया कि बुंदेलखंड के तीन जिलों ललितपुर, झांसी व महोबा की 12 खदानों में 50.33 करोड़ रुपए का अवैध खनन किया गया। झांसी में पांच खदानों में खनिज विभाग की ओर से माइनिंग प्लान स्वीकृत करते हुए 10,8000 क्यूबिक मीटर सैंड स्टोन खनन की अनुमति दी गई, लेकिन खदान मालिकों ने नियमों को दरकिनार कर माइनिंग प्लान के सापेक्ष 59,9270 क्यूबिक मीटर का अधिक खनन कर लिया। इससे खनिज विभाग को 16.48 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। ललितपुर जनपद में दो खदानों को 51 हजार क्यूबिक मीटर पत्थर खनन की अनुमति दी गई, लेकिन इन दोनों खदानों से 2 लाख 62 हजार 245 क्यूबिक मीटर पत्थर का अधिक खनन किया गया। इससे शासन को 4.89 करोड़ रुपए के राजस्व की हानि हुई। वहीं, महोबा में चार खदानों में 96 हजार क्यूबिक मीटर पत्थर की अनुमति दी गई थी, लेकिन इन खदानों से 6 लाख 16 हजार 100 क्यूबिक मीटर अधिक निकाल लिया गया। इससे शासन को 15.77 करोड़ रुपए की चपत लगी। महोबा की एक अन्य खदान ने बिना माइनिंग प्लान के ही 4 लाख 28 लाख 950 क्यूबिक मीटर पत्थर का खनन कर लिया गया। इससे 13.19 करोड़ रुपए के राजस्व की हानि हुई।

कुल मिलाकर नदियों और पहाड़ों में अवैध खनन के इस आलम से उत्तर प्रदेश का 'कश्मीर' कहा जाने वाला बुंदेलखंड अपना वजूद बचाने के लिए छटपटा रहा है। माफियाओं व अधिकारियों का गठजोड़ इसे मिटाने पर तुला हुआ है। इसे रोकने के लिए कोई भी सरकार ठोस कदम उठाना ही नही चाहती शायद इसका कारण यह भी है कि कई बड़े कद वाले नेता इसकी चपेट में आ जायेंगे ।जानकारों की मानें तो आने वाले निकट भविष्य में बुन्देलखण्ड का अवैध खनन देश का एक बड़ा घोटाला बनकर सामने आएगा जिससे यहाँ के बड़े बड़े नेताओ के फंसने की संभावना है । चुनाव नजदीक है लेकिन अवैध खनन का ये मुद्दा किसी भी प्रत्याशी की जुबान पर नही आ रहा है ।

अगर हम बुन्देलखण्ड की दूसरी सबसे बड़ी समस्या की बात करें तो वह है यहाँ से हो रहा लोगों का पलायन । बुंदेलखंड में कुपोषण, भुखमरी और आर्थिक तंगी की वजह से एक दशक के अंतराल में बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर जिलों के 32 लाख से ज्यादा किसान-मजदूरों का पलायन किसी दल की नजर में नहीं रहा ।

डॉ मनमोहन सिंह की अगुआई वाले (संप्रग-दो) के केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक समिति ने 2009-10 में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बंटे बुंदेलखंड़ 13 जिलों से करीब 62 लाख किसान-मजदूरों के पलायन का जिक्र करते हुए एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सौंपी थी, इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड़ के बांदा जिले से सात लाख, 37 हजार, 920, चित्रकूट से तीन लाख, 44 हजार, 801, महोबा जिले से दो लाख, 97 हजार, 547, हमीरपुर जिले से चार लाख, 17 हजार, 489, जालौन से पांच लाख, 38 हजार, 147, झांसी से पांच लाख,58 हजार, 377 और ललितपुर जिले से तीन लाख, 81 हजार, 316 किसान-मजदूरों के पलायन का जिक्र है। 

गौरतलब हो कि पिछले विधानसभा चुनाव में 19 विधानसभा सीटों वाले बुंदेलखंड़ में सात-सात विधायक सपा और बसपा, चार कांग्रेस और एक भाजपा का विधायक चुना गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी चार सांसद भाजपा के जीते हैं, जिनमें झांसी सांसद साध्वी उमा भारती केन्द्र में मंत्री हैं। लाखों किसान-मजदूरों के पलायन के मामले को विधानमंडल में मुख्य विपक्षी दल बसपा ही नहीं, किसी भी दल के विधायकों ने नहीं उठाया। जबकि दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष बांदा के ही वशिंदे हैं। लोकसभा या राज्यसभा में भी पहले विपक्ष में रही भाजपा और अब कांग्रेस भी उठाने की जरूरत नहीं समझ रही। 

बहरहाल आने वाले समय में चुनाव भी सकुशल सम्पन्न हो जायेंगे और कुछ दिनों बाद परिणाम भी आ जायेगा । किसी पार्टी की सरकार भी सत्ता में काबिज हो जायेगी लेकिन अगर कहीं कुछ नही बदलेंगे तो वो है बुन्देलखण्ड के हालात । जब यहाँ के किसी प्रत्याशी और पार्टी के लिए बुन्देलखण्ड के ये प्रमुख मुद्दे मायने ही नही रखते तो फिर इन समस्यायों का हल कैसे होगा ! यूँही समय बीतता जायेगा और बुन्देलखण्ड अपनी बदहाली पर आंसू बहता रहेगा । 

रिपोर्ट - अनुज हनुमत

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