महिला दिवस विशेष : पूज्य माता श्री को प्रेषित पत्र ...
दोस्तों आज पूरा विश्व #महिला_दिवस मना रहा है और सभी अपने अपने तरीके से इस पवित्र दिन को हर कदम पर साथ देने की कसम के साथ यादगार बनाना चाहता हैं और आज के दिन मैं भी इस दिन विशेष में बहुत से तथाकथित समाज के चिंतको के जैसे नकारात्मक बातें नही करूँगा बल्कि आज का ये पावन दिन मैं भी अपनी माँ को समर्पित करूँगा -
मैं अभी तो अपनी माँ से 100 किमी दूर इलाहाबाद में हूँ पर आज मैं इस पवित्र दिन अपनी माता जी को अपना ये पत्र आप सभी के माध्यम से प्रेषित कर रहा हूँ -
मैं अभी तो अपनी माँ से 100 किमी दूर इलाहाबाद में हूँ पर आज मैं इस पवित्र दिन अपनी माता जी को अपना ये पत्र आप सभी के माध्यम से प्रेषित कर रहा हूँ -
प्रणाम ! मुझे भी सभी की तरह नही याद पर विश्वास है की मैंने भी अपने मुख से सबसे पहले माँ शब्द ही बोला होगा और आपने ने मुझे झट से अपनी गोद में उठाकर अपने आँचल से लगाया होगा ।सभी शास्त्र और विद्वानों का कहना है की 'माता ही एक बच्चे की प्राथमिक पाठशाला' होती है और इसका एहसास मुझे आज होता है जब मैं इस समाज रूपी माले में खुद को संस्कार रूपी मोतियों से पिरोया हुआ पाता हूँ । एक स्त्री को अपने जीवन में कई तरह के रिश्ते निभाने पड़ते हैं और हर रिश्ते में आप एक स्त्री को उसी विस्वास और समर्पण रूपी स्वरुप में अपने साथ पाते हो चाहे वो माँ का बेटे से हो ,पत्नी का पति से ,बहिन का भाई से ,बेटी का पिता से - माँ आपने भी सभी रिश्ते पूरे समर्पण और त्याग के सहारे निभाए ।
माँ कहने को तो आज हम माँ 21वीं सदी में कदम रख चुके जिस कारण अब समय में भी काफी बदलाव आया और अगर हम महिलाओ की द्रष्टि से देखे तो ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र शेष हो जहाँ महिलाओ ने अपनी उपस्थिति के झंडे न गाड़े हो ~ पर ये बात और भी ख़ास तब हो जाती है जब हम सब को पता हो की हमारा समाज अभी भी एक पुरुषसत्तात्मक समाज है जहाँ अब भी स्त्रियों को निर्णय लेने से दूर रखा जाता है पर इसका एक अजीब सा रूप यह भी है की इसी पुरुष समाज द्वारा पहले पर्दा प्रथा के जरिये स्त्रियों को घर के अंदर रखा जाता था और आज इसी समाज में स्त्रियाँ पुरुषो के साथ कदम से कदम मिलकर चल रही हैं पर इन दोनों समय के फासलों में अगर कुछ नही पनपा तो वो है -'महिलाओ के प्रति पुरुषो का सम्मान और समर्पण का भाव' ।
जी हाँ और जिस दिन ये भाव पुरुष समाज ने अपना लिए उस दिन से हमें किसी एक दिन 'महिला दिवस' मनाने की जरूरत ही नही पड़ेगी बल्कि पूरा समाज साल के 365 दिन महिला दिवस मनायेंगा । माँ आज मै जब समाज में महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यहार को देखता हूँ तो मुझे बहुत दुःख होता है पर जैसे ही आपका स्मरण करता हूँ तो मन को ये बल मिलता है और आपकी ये बात याद आती है की समाज भी हमसे ही मिलकर बना है और क्या हुआ अगर कुछ लोग स्त्रियों का सम्मान नही भी करते पर बेटे तू कभी ऐसी हरकत मत करना क्योकि तुझे समाज के इन पत्थरो से डरना नही है बल्कि इन्हें ही अपनी सीढियां बनाना है ।
माँ मैं आज हृदय से आपको को प्रणाम करता हूँ और माँ आज मैं आपको याद करके बिलकुल भी नही रोऊँगा क्योकि आज का दिन तो मुझे आपके समर्पण, त्याग,कर्तव्यनिष्ठा और प्यार का स्मरण कराता है , मैं आज शपथ लेता हूँ की अपने जीवन में कभी भी किसी स्त्री के साथ ऐसा व्यवहार नही करूँगा जिससे समाज मुझ पर उंगली उठा सके और जीवनपर्यन्त महिला सशक्तिकरण के लिये कार्य करूँगा । अच्छा माँ मैं जल्दी ही घर आऊंगा बस कुछ ही पेपर और बचे हैं पर अभी लिखना बंद करना पड़ेगा क्योकि कुछ दिनों में पेपर है और हाँ माँ मैं तो बातो ही बातो में भूल ही गया पिता श्री ,बड़े भैयाओ और दोनों भाभी माँ को मेरा प्रणाम कहना ।
आपका लाडला
'अनुज हनुमत'
दिनांक-08/03/2017
समय -शाम 6 बजकर 10 मिनट
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