#बलिदान दिवस : कलम का ऐसा सिपाही जिसने अपनी अंतिम सांस भी पत्रकारिता के नाम कर दी
आज 25 मार्च के ही दिन गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महान शख्सियत ने देश की अखण्डता को बनाये रखने के लिए अपना बलिदान दिया था । आज वो हमारे बीच नही हैं पर उनके बताये गए आदर्श व् सिद्धांत जरूर आज भी हमें मजबूती प्रदान करते हैं । गणेश शंकर विद्यार्थी भारतीय पत्रकारिता के पितामह हैं । वो अक्सर कहा करते थे की समाज का हर नागरिक एक पत्रकार है इसलिए उसे अपने नैतिक दायित्वों का निर्वाहन सदैव करना चाहिए । गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता को एक मिशन मानते थे पर आज के समय में पत्रकारिता मिशन नही बल्कि इसमें बाजार हावी हो गया है जिसके कारण इसकी मौजूदा प्रासंगिकता खतरे में है ।
गणेशशंकर विद्यार्थी आज ही के दिन 25 मार्च सन 1931 को कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए थे। इसी दंगे में उनकी मौत हो गई। सबसे ज्यादा दुःख यह था कि उनका शव अस्पताल में लाशों के ढेर में पड़ा मिला। वह इतना फूल गया था कि पहचानना तक मुश्किल था। नम आँखों से 29 मार्च को विद्यार्थी जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऎसे साहित्यकार रहे, जिन्होंने देश में अपनी कलम से सुधार की क्रांति उत्पन्न की । अपनी अंतिम साँस तक उन्होंने मानवता को सहेजने का कार्य किया । मौजूदा समय में आज हर पत्रकार को गणेश शंकर विद्यार्थी जी के बताये गये रास्ते पर ही चलना चाहिए ।
"गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ साहित्य और पत्रकारिता के ऐसे ही शीर्ष स्तम्भ थे, जिनके अखबार ‘प्रताप‘ ने स्वाधीनता आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभायी। प्रताप के जरिये जहाँ न जाने कितने क्रान्तिकारी स्वाधीनता आन्दोलन से रूबरू हुए, वहीं समय-समय पर यह अखबार क्रान्तिकारियों हेतु सुरक्षा की ढाल भी बना।"
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को अपने ननिहाल अतरसुइया, इलाहाबाद में हुआ था। उनके नाना सूरज प्रसाद श्रीवास्तव सहायक जेलर थे, अत: अनुशासन उन्हें विरासत में मिला।
सबको पता है कि कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऎसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेशशंकर विद्यार्थी भी ऎसे ही पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऎसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक समर्थकों और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आजादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे। महात्मा गांधी भी इनकी कार्यशैली का लोहा मानते थे ।
हम सूचना क्रांति के दौर में जी रहे हैं जिसने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अमूल चूक परिवर्तन किया है । एक पत्रकार के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है इसलिए इसे हमेशा सजग व् सचेत रहना चाहिए । मौजूदा समय में कई लोगों ने पत्रकारिता को अपना व्यवसाय बना रखा है जिसके कारण इसकी प्रासंगिकता पर खतरा उत्पन्न हो गया है । जरूरत है कड़े अनुशासन और मजबूत प्रतिबद्धता से कार्य करने की क्योंकि वास्तव में पत्रकारिता कोई व्यवसाय नही बल्कि एक मिशन है । समाज में शांति बनाए रखने का मिशन , समाज को एक रखने का मिशन ।
हम सूचना क्रांति के ऐसे दौर में पत्रकारिता कर रहे हैं जहाँ हमारे पास डिजिटल कलम है जिससे बड़े बदलाव किये जा सकते हैं ।लेकिन पहले हमें संयमित होना पड़ेगा । आज के पत्रकार के लिए एक दिन में 100 खबरें लिखना आवश्यक नही बल्कि एक ऐसी खबर जो उन 100 खबरों के बराबर हो । आज के मौजूदा दौर में पत्रकारिता को पुनः हमारे (पत्रकारों) त्याग की जरूरत है क्योंकि समाज का स्तर लगातार गिरता जा रहा है और इसके लिए कहीं न कहीं हम ही जिम्मेदार हैं ।
इसी कलम ने ब्रिटिश हूकूमत की जड़ें हिला दी थी । इसी कलम से नेपोलियन भी डरा करता था । लेकिन आज के समय में कुछ गंदी और ओछी मानसिकता के हमारे भाई लोगों (पत्रकारों) की वजह से इस कलम की महत्ता में गिरावट आई है । लेकिन आज भी कुछ ऐसे कलम के सिपाही हैं जिनके ऊपर मौजूदा पत्रकारिता को गर्व है । आज गणेश शंकर विद्यार्थी जी हमारे बीच नही हैं लेकिन उनका वो मिशन जरूर है जिसके लिए उन्होंने अपने प्राणों को बलिदान कर दिया । ऐसे महान व् कर्मठ व्यक्तित्व को शत शत नमन ।
रिपोर्ट -
अनुज हनुमत
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