#बुन्देलखण्ड : इस बार भी बेरंग रही पाठावासियो की होली



मानिकपुर/ पाठा की धरती तीन दशक से भी ज्यादा समय से सूखे की मार झेल रही है । पिछली बार भीषण बाढ़ ने बहुत नुकसान किया । मुआवजे के नाम पर छोटे छोटे सूखे चेक पीड़ितों को पकड़ाये गये । हर बार की तरह खाने के लिए अन्न ज्यादा मात्रा में न पैदा होने के कारण किसानों का ये रंग बिरंगा होली का त्यौहार भी बेरंग ही साबित हुआ । हालत इतनी ख़राब है की गाँवो में पसरा सन्नाटा , घरों में लटके ताले , सूखे पड़े खेत, सूखी नदियाँ, खाली पड़े खूंटे  सारी स्थिति बयां कर रहे हैं । 

कुछ किसानों का कहना था की सोंचा था कि इस बार बारिश अच्छी हुई है तो हँसी खुशी होली मनाएंगे पर स्थिति ज्यादा अच्छी नही रही । सरकारी अमला कुछ भी कहे लेकिन तस्वीरें सब बयां कर रही हैं ।अधिकांश गाँवों में ज्यादातर घर सुनसान पड़े हैं जिसमे एक दुक्का बूढ़े माँ बाप रह रहे हैं और उनमे से ज्यादातर लोग बाहर पलायन कर चुके हैं । पलायन करने वालों में नौजवानों की संख्या काफी ज्यादा है । 

गौरतलब है कि होली का त्यौहार खुशियों लेकर आता है । सभी को आशा रहती है की खुशियों के अलग अलग रंग देखने को मिलेंगे पर यहाँ तो सिवाए निराशा के कोई रंग देखने को नही मिला । 20 किमी दूर छोटे से गाँव में एक टोली दिखी जो ‘फॉग'(बुन्देलखण्ड का प्रसिद्द लोकगीत) गा रही थी पर इनके पास भी होली के रंग नही दिखे । इससे इतर कुछ गाँव वालों का कहना था की कौनो नेता नही आवत सब गरीबै का झेलै का परत है । 

खैर जब इन तमाम समस्यायों पर हमने क्षेत्र के नेताओं से बात करनी चाही तो किसी ने सीधे तौर पर इस विषय पर बात नही की।सबसे बड़ी बात ये है जब चुनाव आते हैं तब इस क्षेत्र की समस्याएं यहाँ के चुनावी मुद्दों से अचानक गायब हो जाती है ।

दरअसल, रिपोर्टों की मानें तो पिछले 15 सालों में कुल 62 लाख से अधिक लोगों ने बुन्देलखण्ड से पलायन किया है पर अभी तक इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार द्वारा कोई ठोस रणनीति नही बनाई गई है जिससे सूखे की मार झेल रहे किसानों को फायदा मिल सके। प्रदेश की योगी सरकार से लोगो को काफी आशा है । 

चुनावी वादे के अनुसार पहली कैबिनेट बैठक में सरकार छोटे किसानों का कर्ज माफ करेगी ! लेकिन मौजूदा समय में सबसे बड़ा प्रश्न ये है किन किसानों का कर्ज माफ होगा ? या किसानों की कर्जमाफी भर से समूचे यूपी खासतौर पर बुन्देलखण्ड के किसानों की समस्याएं खत्म हो जाएंगी ?

रिपोर्ट - अनुज हनुमत

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