रिपोर्टिंग के दौरान मारकुंडी के जंगल मे मिले हजारों साल पुराने सभ्यता के निशान


                              
मारकुंडी/चित्रकूट   
  पाठा क्षेत्र के बीहड़ इलाकों मे रिपोर्टिंग दौरान मुझे और मेरी टीम को मारकुंडी और टिकरिया के बीच पड़ने वाले बड़पथरी के जंगलों हजारों साल पुरानी सभ्यता के कुछ और निशान मिले जो कि एक बड़ी खोज साबित हो सकती है ! इस स्थान पर जो शैलचित्र मिले वो एक बड़े शैलाश्रय पर बने थे । ये हमे अब तक प्राप्त सभी शैलचित्रों में सबसे अनोखा और  खास लगा क्योंकि इसमें बने शैलचित्र जानवरों की लड़ाई से सम्बंधित हैं । इसमें मानव सभ्यता के शुरुआती दौर के कई राज छिपे हो सकते हैं ।

 गौरतलब हो कि इससे पहले भी मैंने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान सरहट , बांसा ,चूही और करपटिया के आस पास बड़ी संख्या में शैलचित्र प्रकाश में लाये थे । 

आपको बता दें कि मारकण्डेय आश्रम से कुछ ही दूरी पर बगहा जंगलों में एक विशाल शैलाश्रय (चट्टान) पर आदि मानव द्वारा बनाए गये शैलचित्र काफी मात्रा मे मौजूद हैं। मैंने इन शैल चित्रों को प्रकाश में लाकर उन्हें सरंक्षित करने हेतु पीएमओ को पत्र भेजा था । जिसके बाद पुरातत्व विभाग की टीम ने इनमें से कुछ स्थानों का निरीक्षण किया था । पाठा मे हजारों वर्ष पहले पनपी पुरापाषाणकालीन संस्कृति को संरक्षित, सहेजने की जरूरत है । इससे पहिले भी बांसा, चूल्ही, करपटिया के जंगल, सरहट (मानिकपुर) आदि जगहों पर रिपोर्टिंग के दौरान मैंने यहाँ मौजूद शैल चित्रों के विषय में प्रधानमंत्री कार्यालय और पुरातत्व विभाग को पत्र लिखकर सूचित किया था । 

यह देखना आश्चर्यजनक है कि इन पेंटिंग्स में जो रंग भरे गए थे वो कई युगों बाद अभी तक वैसे ही बने हुए हैं. इन पेंटिंग्स में आमतौर पर प्राकृतिक लाल ,गेरुआ और सफेद रंगों का प्रयोग किया गया है। यहाँ की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे।इस प्रकार भीम बैठका के प्राचीन मानव के संज्ञानात्मक विकास का कालक्रम विश्व के अन्य प्राचीन समानांतर स्थलों से हजारों वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार से यह स्थल मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जा सकता है।  इन शैलचित्रों में दैनिक जीवन की घटनाओं से लिए गए विषय अंकित हैं । ये हज़ारों वर्ष पहले का जीवन दर्शाते हैं। यहाँ बनाए गए चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। इनके अलावा बाघ, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है जो कि अविश्वसनीय है ।

 मुझे लगता है की पाठा संस्कृति का निवास स्थान श्रेष्ठतम है क्योंकि इस स्थान के बगल से चन्द दूरी पर कई स्थाई बरसाती नाले निकलते हैं तो वहीं दूसरी ओर चट्टान असमान रूप से समतल है जैसे उन्हें किसी ने घिसकर बराबर किया हो । जैसी स्थिति मध्यकालीन किलो की होती थी वैसे ही सुरक्षित स्थिति इसकी भी है । शैलचित्र के पास ही बहुत बड़ा सा एक सपाट आँगन है जैसे वहीं पर हमारे पूर्वज अपने दैनिक कार्यक्रम करते रहे हो और स्थल के आसपास पत्थरों के बने दर्जनों चिकने चबूतरे हैं । एक सामान्य व्यक्ति भी इस बसावट को देखकर हमारे पूर्वजों के रहने की पुष्टि कर सकता है । वहीं पर पास में मुझे अप्रत्याशित रूप से एक पत्थर की मूर्ति भी देखने को मिली जिसमे देवी माँ की आकृति जैसी सरंचना दिखाई पड़ती है ।

यह पूरा स्थान ही पूर्वजों के हाथों और पैरों से घिसकर चिकना किया हुआ प्रतीत होता है और यहाँ चट्टानों का ऐसा चिकनापन प्रकृति के अपक्षय से नही हो सकता । सारी चट्टानें चींख चींख कर कह रही हैं की यहाँ एक मानव सभ्यता पनपी थी । प्राचीन इतिहास के शोध छात्रों को इसे अपने शोध का विषय बनाना चाहिए जिससे इससे जुड़े और भी राज खुल सकें । रस्सी की रगड़ से पत्थर पर निशान पड़ जाता है वैसे ही उन पूर्वजों के दैनिक कार्यों के कारण ये पूरा स्थल भी मानवकृत और चिकना हो गया है । 

सरहट और उसके आस पास के स्थानों पर जो शैलचित्र पाये गये हैं वो भी हूबहू भीमबैठका के शैलचित्रों जैसे ही हैं। यानि कि भीमबैठका और सरहट के शैलचित्रों में काफी सामानता है । इस कारण ये भी हजारों साल पुरानी संस्कृति हुई ।भीमबैठका के चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ और लाल रंग है । सबसे आश्चर्य वाली बात ये है कि सरहट और उसके आस पास बने शैलचित्रों में भी बड़े पैमाने पर गेरुआ रंग ही प्रयोग हुआ है । 

ये महज एक चित्र की कहानी नही है बल्कि ये पाठा में पनपी एक बड़ी पुरापाषाणकालीन संस्कृति है और जैसे सिंधु घाटी सभ्यता की खोज बहुत बाद में हुई लेकिन आज वह श्रेष्टतम मानव संस्कृतियों में से एक है ।उसी प्रकार पाठा की ये संस्कृति भी तमाम रहस्य समेटे हुए है और समकालीन पाषाण संस्कृतियों में सबसे आगे निकल सकती है ।

इस पाठा संस्कृति के अवशेष इसलिए भी नष्ट हो सकते है क्योंकि इससे एक किमी दूर ही खनन माफियो द्वारा अवैध रूप से वोल्डरों का खनन जारी है । इसलिये सरकार इसे तुरन्त सरंक्षित क्षेत्र घोषित करें । वैसे इन शैल चित्रों के माध्यम से आने वाली पीढ़ी एक नई कला को जन्म दे सकती है । यह खोज युवा पीढ़ी की खोज है जिसने ये साबित कर दिया की किताबों में लिखे पुरातात्विक ध्वंसावशेष आज भी जीवित अवस्था में है । 

रिपोर्ट / 
अनुज हनुमत

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