महिला दिवस विशेष -महिला उत्पीड़न के पुरुष जिम्मेदार हैं !



आज महिला दिवस है और सुबह से ही अधिकांश विद्वानों द्वारा लेखनी के माध्यम से  खूब चिंतन किया जा रहा है । आज के दिन खूब गोष्ठियां और तरह तरह के कार्यक्रम किये जा रहे हैं जिसका आयोजन पुरुषों द्वारा किया जा रहा है और पुरुषों द्वारा ही 'खूब माइक तोड़ाई' भी हो रही है । मेरे व्यक्तिगत विचार हो सकता है की सभी पुरुषों को चुभें पर एक पुरुष होने के नाते मुझे तो बहुत शर्म महसूस होती है।

इस पुरुषसत्तात्मक समाज में पुरुष अपनी झूठी शान बनाये रखने के लिए सदैव 'स्त्री' के स्वाभिमान को कुचलता है और फिर कुछ लोग,कुछ कुर्सियों के साथ एक अदद माइक लेकर सजाना शुरू करते हैं उस मंच को जहाँ रचा जाता है इज्जत सहेजने के कार्यक्रम का  'स्वांग' !........

 कुछ घण्टे माइक तोड़ने के बाद खुद पुरुष ही कसम खाते हैं की हम हर हाल में महिलायों की सुरक्षा करेंगे । उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे ।    

    महिलाओं के उत्पीड़न के लिए ज्यादातर केवल पुरुष ही जिम्मेदार है जिसका सबसे बड़ा कारण 'सोंच का दोहरीकरण' है । अधिकांश ऐसे लोगों की गंदी मानसिकता उनके अपने रिश्तों में देखने को नही मिलती जबकि चौखट के बाहर कदम रखते ही अपने असल रूप में आ जाते हैं ।।

उदाहरण के लिए अधिकांश ऐसे विकृत मानसिकता के लोग अपनी बहन ,माँ का तो बहुत सम्मान करते हैं पर जैसे ही अपने घर की चौखट से बाहर निकलते है अपने व्यवहार का निकम्मापन दिखाना शुरू कर देते हैं । उन्हें दूसरों की बहन में अपनी बहन नही दिखती ? दूसरों की माँ में अपनी माँ नही दिखती ? ये सोंच का दोहरा रवैया नही तो क्या है ? निकम्मी और ढीठ मानसिकता नही तो क्या है ?

सच्चे अर्थों में 'महिला दिवस' का ये दिन तभी अपने मूल उद्देश्य को सहेज पायेगा जब समाज के कथित ठेकेदार अपनी सोंच में बदलाव लाएंगे..............

 ◆आपका◆
अनुज हनुमत 



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