जिंदगी और मौत के बीच की मजबूत कड़ी है हनुमत

आज मैं आप सबको अपनी जिंदगी का वो दर्दनाक सच बताऊंगा जिसको याद करके मेरी आँखे आज भी आंसूओं से भर जाती है । जिंदगी के इसी हिस्से में मेरे नाम की सच्चाई भी छिपी है । ये पूरा वाकया मैंने अपनी आँखों से तो नही देखा लेकिन मेरे माता-पिता इसके गवाह हैं । उन्होंने जिस दिन मुझे पूरी कहानी बताई मेरे लिये वो सबसे ज्यादा भावुक पल था । जब पूरी दास्तां पापा और मम्मी ने बता डाली तो उनकी आँखों में भी आंसू आ गए थे । शायद उन्हें फिर वही सब याद आ गया था ।

मैं समझ चुका था कि ये खुशी के आंसू हैं न की दुःख के लेकिन उस वक्त ये सब समझने का वक्त नही बल्कि ये महसूस करने का समय था कि कैसे माता पिता अपने दुःखों को एक बगल रखकर अपने बच्चो (हमारे) के पालन पोषण में दिन रात एक कर देते हैं ।

    जिंदगी के इस हिस्से पूरा सच मेरे आज के नाम #अनुज_हनुमत से जुड़ा है । ये बात तकरीबन 18 से 20 साल पुरानी है । मै उस वक्त निमोनिया की गिरफ्त में था और मेरी स्थिति बहुत गंभीर थी । तब घर की माली हालत भी बिल्कुल ठीक नही थी और ऐसे समय में मेरा नियमित ईलाज करा पाना संभव नही हो पा रहा था ।

एक तरफ मैं जिंदगी और मौत से खेल रहा था वहीं दूसरी ओर मेरे माता पिता इस बात से चिंतित थे कि आगे ईलाज में लगने वाले रुपयों की व्यवस्था कैसे होगी ! उस समय मम्मी के पास चांदी का इकलौता आभूषण था जिसकी कीमत उस समय कुछ हजार रूपये थी लेकिन मेरे ईलाज के लिए काफी थी । मम्मी ने फौरन ही उसे पापा के हवाले कर दिया और पापा ने उसे नगर के ही एक प्रतिष्ठित धनाढ्य सोनार के यहाँ गिरवी रख दिया और उससे जितने रूपये प्राप्त हुये उसको मेरे ईलाज में लगा दिया ।

   मेरी तबियत में धीरे धीरे सुधार हुआ लेकिन अभी भी हालत खतरे से बाहर नही थी । ऐसे कठिन समय में पापा (जो कि 70 के दशक में जीव विज्ञान से एमएससी थे यानि विज्ञान पर उन्हें ज्यादा भरोसा था ) मुझे भारतीय संस्कृति के सबसे मजबूत पक्ष की ओर ले गये ।

पापा मुझेे  पास के ही एक प्रतिष्ठित हनुमान मंदिर (जहाँ मैं एडमिट था) ले गए । जहाँ उन्होंने मुझे हनुमान जी शरण में रख दिया और कहा कि अब इस बच्चे को आप ही बचा सकते हैं ! इसके बाद दिन बीतने लगे और धीरे धीरे मेरी तबियत में सुधार होने लगा और देखते देखते मैं जिंदगी की एक नई सुबह को जी रहा था । पापा ने उसी वक्त मुझे 'हनुमत शरण' के नाम से पुकारा ।

  हालाँकि ये नाम चलन में नही आ सका और धीरे धीरे लुप्त हो गया और मैं सिर्फ 'अनुज' नाम से पुकारा जाने लगा । हालाँकि मेरे माता पिता उस चांदी के आभूषण को (जिसे गिरवी रखा) नही बचा पाये और वो हाथ से निकल गया । इस बात से मेरे माता पिता जितना व्यथित नही थे उससे ज्यादा सन्तुष्ट थे कि बच्चे की जान बच गई ।  मैं धीरे धीरे बड़ा होने लगा और इस बीच मेरे दिमाग में अक्सर माता-पिता की बताई पूरी दास्ताँ आँखों के सामने आ जाती थी ।

एक दिन मैंने सोंचा कि क्यों न मैं अपने नाम में 'हनुमत' जोड़ लूँ और फिर क्या जैसे ही 'अनुज हनुमत' के नाम से 17 वर्ष की आयु में छात्र राजनीति में उसके बाद सक्रीय राजनीति और फिर समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा तो देखते ही देखते सबकुछ बदल गया । 'हनुमत' नाम से आज भी एक विशेष ऊर्जा मिलती है चाहे जैसा कार्य हो ! चाहे जैसा समय हो !  ..............तो बस इत्ती सी थी मेरे नाम अर्थात 'अनुज हनुमत' की सच्चाई ।

#नोट / "माता-पिता इस धरती पर हमारे लिए सबसे अमूल्य उपहार हैं इनके ऋण से हम कभी उऋण नही सकते लेकिन समाज में उनके द्वारा स्थापित मूल्यों की रक्षा जरूर कर सकते हैं । उनकी बातों का पालन करके हम जिंदगी में कभी भटक नही सकते । मैंने इस धरती पर ईश्वर को नही देखा लेकिन अपने माता-पिता के रूप में उस परमब्रह्म परमेश्वर को हमेशा अपने पास पाया है । धन्यवाद पिता श्री । माता श्री । मैं आज अपने जन्मदिन पर आप दोनों को नमन करता हूँ और वादा करता हूँ कि आपका ,परिवार का ,पूर्वजों का ,क्षेत्र का ,राज्य का और देश का नाम जरूर रोशन करूँगा । गर्व है मुझे आपकी सन्तान होने पर । गर्व है मुझे पाठा का निवासी होने पर ।"

आपका
√अनुज हनुमत
#पाठा_का_संघर्ष

Comments

  1. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.. हम ईश्वर से आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं..!

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  2. सुंदर कथा
    स्वयं हनुमत की तरह जीवंत रहें और सम्पूर्ण समाज को जगाते रहें
    जन्मदिन की शुभकामनाएं

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