सूखे के कारण 'कमल की जड़' खाने को मजबूर किसान

            सुना था जब किसी के ऊपर किसी आपदा की दोहरी मार पड़ती है तो वह बिल्कुल ही अकेला पड़ जाता है और अंदर से टूट जाता है । लेकिन इसके बावजूद भी वह उस आपदा से लड़ना नही भूलता क्योंकि उसे पता है की जिंदगी कितनी अनमोल उपहार है । शायद इसका जीता-जागता उदाहरण है हमारे देश का 'किसान' । जो मौजूदा समय में अपने जीवन में दोहरी मार झेल रहा है एक तो ईश्वर की सूखे की मार जो बढ़ते तापमान के साथ बढ़ती जा रही है और दूसरा प्रशासन की उपेक्षा जिसे किसान हमेशा ही चुनावी रसगुल्ला लगा है जिसे हर साल लगभग इसी प्रचंड गर्मी में उपयोग किया जाता है । लेकिन किसान जिसने अपनी कृषि से भारत की अर्थव्यवस्था को थाम रखा है उसकी ऐसी बदहाल हालत आगे के समय के लिए ठीक नही । वैसे तो पूरा देश भीषण सूखे से जूझ रहा है लेकिन बावजूद इसके कुछ किसान ऐसे हैं जो अपने अस्तित्व के लिए जिदंगी से लगातार लड़ रहे हैं ।

ऐसे ही एक संघर्ष की कहानी बुन्देलखण्ड के चित्रकूट जिले की है जहाँ मऊ तहसील के खंडेहा गाँव के कुछ किसान 'कमल के फूल की जड़' खाने को विवश हैं । लगातार तापमान बढ़ने के कारण पानी के सारे स्रोत ख़त्म हो रहे हैं। गाँव में एकाधे तालाब हैं जो सूख चुके हैं । तालाब सूखने के बाद भी ये किसानों की जान बचा रहे हैं । सुनकर आपको भी अचम्भा लग रहा होगा की जब तालाब में पानी ही नही है तो कैसे इससे किसानों की जान बच रही होगी पर ये सच है । 




अभी हाल ही में जिस दिन मैं इस गाँव गया उस दिन भी तापमान 47℃ था यानी ऐसी प्रचण्ड गर्मी जिसमें कुछ देर भी धूप में खड़े रहना जानलेवा हो सकता था ऐसे में गाँव के किनारे एक बड़ा तालाब है जिसके बारे में सभी गाँव वालों का कहना था की ये पिछले किसी सूखे में कभी नही सूखा । जैसे ही इस तालाब के कुछ नजदीक पहुंचा तो मैंने देखा कुछ लोग  अपने फावड़ें से उस सूखी धरती में भी खुदाई कर रहे थे । आश्चर्य हुआ की इस प्रचण्ड गर्मी में आखिर ये लोग तालाब के बीचोंबीच क्या खोद रहे हैं और वो भी पूरी लगन से । मैं फौरन उनके पास गया और जो देखा वो और भी आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य था । कुछ किसान थे जिनके शरीर पर फटे पुराने कुछ कपडे थे । कुछ ने तो केवल धोती पहन रखी थी और ऊपर का बदन खुला था ।उन्ही के कुछ दूर पर दो बच्चे बैठे थे जिनमे से एक बच्चा उसी सूखी मिट्टी से खेल रहा था और दूसरी बच्ची कपड़ों की पोटली में कुछ लपेट रही थी ।मै जिज्ञासावश फौरन उसके पास गया और पूछा ये तुम अपनी पोटली में क्या बांध रही हो ,वो कुछ नही बोली । बगल से आवाज आई बाबू जी ये 'कमल की जड़ें' हैं जिन्हें हम इस तालाब की मिट्टी से खोदकर इकट्ठा कर रहे हैं । देशी भाषा में इसे कमल गट्टा भी कहते हैं । मैंने पूछा की फिर आप इसका क्या करेंगे ,क्या इसे बेचेंगे ? तो उन्होंने कहा ,'हम इसे खाएंगे ,बेचेंगे नही' । 
     

ये सुनकर एक पल के लिए मानों मैं और मेरे तमाम एहसास थम से गए क्योंकि इसी महीने मैने एक पेपर में महोबा जिले के एक गाँव की खबर पढी थी जहाँ के कुछ किसान घास की रोटी खाने को मजबूर थे पर सूखे के कारण किसानों की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर मेरा मन व्याकुल सा हो गया । मैंने पूछा की आपके गाँव में तो कई बोर हैं फिर पानी की क्या स्थिति है ? उन्होंने कहा बाबू जी ,' पानी को खा थोड़े ही सकते हैं ,काम करते वक्त पीने को मिल जाता है पर खाने के लिए कुछ जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा क्योंकि हमें जीना है । सरकार की तरफ से कोई मदद नही मिल पा रही है और अगर यही हालात रहे तो हमें ये गाँव छोड़कर ही जाना पड़ेगा ।

आश्चर्य होता है की एक तरफ सूखे से निपटने के खातिर सरकार द्वारा तमाम योजनाएँ चलाई जा रही है और कहा जा रहा है की हमारा स्थिति पर नियंत्रण है पर ये सब घोषणाएं और वादे गाँवों में जाते ही दम तोड़ने लगती है । कहीं बूँद बूँद पानी के लिए किसान संघर्ष कर रहे है तो कहीं दो वक्त के खाने का संघर्ष । वास्तव में खंडेहा गाँव के कुछ किसानों का कमल के फूल की जड़ खोदकर खाना उस लोकतान्त्रिक देश की व्यवस्था पर सीधा तमाचा है जहाँ की अर्थव्यवस्था इन्ही किसानों की कृषि पर टिकी है और वही किसान इस समय अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है ।
                                                 

मऊ तहसील का ये गाँव मौजूदा समय में किसानों की बदहाली की कहानी बताता अकेला गाँव नही बल्कि इस तरह के अनगिनत गांव हैं जहाँ के छोटे किसानों के पास खाने के लिए अन्न नही है और वो या तो घास की रोटी खा रहे हैं या तो कमल की जड़ें । अगर सरकारों द्वारा आपसी राजनीति से निकलकर इस समस्या से निपटने के लिए जल्दी ही कोई प्रभावी कदम नही उठाये गए तो स्थिति और भी दयनीय हो जायेगी जिसकी भरपाई कोई नही कर पायेगा और फिर जब किसान ही नही रहेगा तो सोंचिये देश का क्या होगा ? और जब देश ही नही रहेगा तो किसी भी तरह के भौतिक सुख की कल्पना करना बेमानी ही होगा ।खासकर राजनीति जिसे अभी सभी नेता केवल अपने अपने हितों की पूर्ति का साधन मानते हैं न की आम जनमानस का भला । किसी भी लोकतान्त्रिक देश में राजनीति का अस्तित्व भी वहां के नागरिकों के चतुर्मुखी विकास से होता है । प्रदेश सरकार ने रबी फसलों में नुकसान के आधार पर सूबे के आठ जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करने के साथ ही सूखा प्रभावित जिलों में राहत कार्य तेज करने का विस्तृत दिशानिर्देश जारी कर दिया है लेकिन ये तो आने वाला समय बताएगा की इससे किसानों का कितना फायदा होगा !
आपका
अनुज हनुमत 'सत्यार्थी'

Comments

Popular posts from this blog

#VisitMountAbu / चंद्रावती - "हजारों वर्ष पुराना ऐसा शहर जो आज भी जिंदा है...."

आखिरकार दस्यु सम्राट ददुआ को मरणोपरांत मिल ही गया भगवान का दर्जा, मूर्ति हुई स्थापित

#Visit Mount Abu - विंध्य से अरावली की पहाड़ियों तक का सफर ...कुछ खास है