शहीदों के स्‍मारक की इस दुर्दशा पर शर्मसार होंगे आप, अब बस मोदी से ही उम्‍मीदें..

पहले मैं सोचा करता था की भगत सिंह जैसे लोग हमारे चित्रकूट में क्यों नही पैदा हुए? लेकिन मैं गलत था की क्योंकि ऐसे लोग पैदा भी हुए हैं, और भगत सिंह जैसी कुर्बानी भी दी है पर हमने उन्हें पहचाना नहीं। उन्हें फांसी पर चढ़ते समय इतना दुःख नहीं हुआ होगा जितना की आज उनको भुला देने पर होगा। अगर मानिकपुर के पुराने थाने में शहीदों के लिए दीपक जलाये गए होते तो आज पठानकोट में शहीद हुए जवानो की चिताएं न जलानी पड़तीं।  वाकई जिन सपूतों ने देश की स्वतन्त्रता के खातिर हंसते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया आज हम उन शहीदों के ऐतिहासिक स्थलों को भी सहेज पाने में असमर्थ हैं।
आए दिन समाचार के माध्यम से ये खबरे सामने आती हैं की भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव जैसे देश के सपूतों के जन्मस्थल से लेकर ऐसे स्थान जहां से उन्होंने देश की आजादी के लिए हुंकार भरी, आज वो सभी स्थान भी सरकार के साथ साथ सामाजिक उपेक्षा के भी शिकार हैं। ये हाल तो लगभग सभी सपूतों के हैं, पर कई स्थान ऐसे भी हैं, जहां अंग्रेजों ने ऐसे कई हजार आम लोगो को फांसी पर लटका दिया क्योकि उन्हें भी गुलामी मंजूर नहीं थी। ऐसे स्थानों की तादाद काफी थी, पर अंग्रेजों ने इसे तत्कालीन जेल का रूप दे रखा था।
ऐसे ही अंग्रेजों के समय की जेल मेरे गृहनगर मानिकपुर में थी, जो आज सरकार की उदासीनता के चलते लगभग धूल धूसरित हो गया है। इन्ही में से एक मानिकपुर ब्लॉक संसाधन केंद्र के ठीक पीछे पड़ा खंडहर, जो आज भी चीख-चीखकर अपने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले अमर शहीदों की याद दिलाता है।
Chitr
मेरा नगर मानिकपुर (चित्रकूट) जिला मुख्यालय से 30 किमी की दूरी पर है। हमारे नगर में स्वतन्त्रता संग्राम और उस समय के बहुत अवशेष जीवित हैं, परन्तु मात्र खंडहरों के रूप में, अगर अगले 2-3 साल तक इनकी देखरेख नहीं की गई तो ये धूल धूसरित हो जाएंगे। जानकारी इकठ्ठा करने के दौरान मुझे 1906 से 1909 ई. के बीच का नक्शा प्राप्त हुआ, जिसका अध्ययन करने पर 684 नं. पर यह स्थान 'थाना मानिकपुर' के नाम से दर्ज है।
अर्थात् शुरुआती जांच पड़ताल से यह स्थान 100 साल से भी अधिक पुराना है। नगर के कुछ बुजुर्गो के अनुसार यहां 60 साल पूर्व थाने में ब्रिटिशों के द्वारा देशभक्तो को फांसी दी जाती थी। जब मैंने इसकी हालत देखी तो मुझे बहुत दुःख हुआ यहां का हर कीमती सामान व् दस्तावेज लोहे से बने दरवाजे व् छड़ व् अन्य बेशकीमती सामान सरकार की उदासीनता के कारण चोरी हो गए। क्या शहीदों को ऐसा ही सम्मान मिलता रहेगा?
पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश भक्तों के ऐसे शहीद स्थल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। इसके चलते इतिहास की बेशकीमती धरोहर के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है। जिले के इक्का-दुक्का शहीदों की यादों के  इस  तरह के खजाने को लेकर शासन और प्रशासन की उदासीनता लोगो को परेशान करती है। पुराने लोग बताते हैं, कि यहां पर देशभक्तों को अंग्रेज फांसी देते थे। ब्लॉक संसाधन केंद्र के पीछे खंडहरों में बिखरे अवशेष हमारे देशभक्तों की बहादुरी के किस्से बताते हैं। पुराना मानिकपुर के बुजुर्गो से इसका जिक्र छेड़ने पर वे धुंधली यांदों में खो जाते हैं।
90 वर्षीय अयोध्या प्रसाद बताते हैं की वह जमाना निरंकुशता का था। हालांकि मानिकपुर के इस थाने के निरंकुश थानेदार जिसका नाम बृजमोहन था ,पर तब के जमींदार अंकुश रखते थे। वे बताते हैं कि थानेदार पेड़ से लटकाकर देशभक्तों को फांसी देता था और इसको रजिस्टर में दर्ज भी नहीं करता था। जब इसकी जानकारी जमींदार को होती थी, तो बवाल भी हो जाता था।
माताबदल बताते हैं कि तब अंग्रेजों की सरपरस्ती में थानेदार और सिपाही पास के तालाब नहाने आने वाली महिलाओं से भी अभद्रता करते थे। जब ये बातें जमीदार को पता चली, तो उसने गांवों वालो को इकट्ठा किया और थानेदार को जमकर पीटा और बाहर निकाल दिया। माताबदल बताते हैं की शायद इसके बाद यहां से थाना दूसरी जगह स्थान्तरित भी कर दिया गया।
एक बार जरूर सोचिए की खंडहर हो रही, इन ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में सरकार का ध्यान कभी  गया हो। सरकार के पास सौ काम है, फिर उसको दोष देना भी जायज नहीं। यह मामला सरकार के सामने प्रभावशाली ढंग से रखने का भी किसी ने कोई प्रयास किया? हमारी वैभवशाली विरासत गर्त में जा रही है और हम आज भी इससे अंजान बने हैं।
Indian Army
स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या किसी वीर सपूत के शहीद दिवस के मौके पर एक बार जरूर सोचिए की कल कहीं आपके नाती-पोते ने कोई तस्वीर देखकर कहा की दादा-बाबा हमें इस जगह जाना है तो उनसे क्या यह कह पाएंगे की हमारे नकारेपन की वजह से अब इसका वजूद नहीं रह गया है। ऐसे में पुरातत्व विभाग को इस भवन को अपने कब्जे में लेकर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इसका विकास करना चाहिए, ताकि ऐसे क्षेत्रों के नवयुवक शहीदों की कुर्बानी के सम्बन्ध में जान सके।
इसके आलावा भवन को शहीद स्थल के रूप में घोषित करते हुए यहाँ से चोरी हुई सामग्री बरामद की जाए। मेरे सुझावनुसार मोदी  सरकार को 'शहीद विभाग' का गठन करना चाहिए, जो ऐसे शहीद स्थलों को खोजे ,उनकी मरम्मत कराए, विचार गोष्ठियां कराए पूरे देश में एक ऐसा आंदोलन बन जाए, जहां शहीदों की कुर्बानी को वाकई में महसूस किया जाए। मेरा दावा है की सदियों से देश में इसी बात की कमी थी की हमने शहीदों को सम्मान नहीं दिया।

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