यदि IIT में प्रवेश लेने का सपना लेकर कोटा जाना चाहते हैं, तो पहले पढ़ लें ये खबर..!

देश के प्रतिष्‍ठित तकनीकी संस्‍थान आईआईटी में प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए राजस्‍थान स्‍थित कोटा अपने बेहतरीन कोचिंग संस्‍थानों की वजह से पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां केवल राजस्‍थान ही नहीं बल्‍कि पूरे देश से छात्र 12 वीं के बाद आईटीआईटी संस्‍थान में  प्रवेश पाने का सपना लिए आते हैं और मेहनत कर अपना सपना पूरा करते हैं। लेकिन इसी कोटा को जाने किसकी नजर लग गई है कि पिछले पांच सालों में यहां तकरीबन 72 छात्रों ने आत्‍महत्‍या की है, जबकि इसी साल 24 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं, और यदि आज की बात करें तो कल ही एक और छात्र आत्‍महत्‍या कर चुका है यानी की यह संख्‍या लगातार बढ़ रही है।
बहरहाल, हालिया दिनों में आई रिपोर्ट की माने तो पिछले पांच सालों में कुल 72 छात्रो ने केवल इसलिए आत्महत्याएं की क्योकि वो अच्छे संस्थानों में दाखिले को लेकर बहुत ज्यादा दवाब और अपने अभिभावकों की आशाओं पर खरे नही उतर पा रहे थे , जिसके कारण उन्हें इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा।
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अभी कुछ दिनों पहले इन्डियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार ने जब इसकी तह तक जाने का प्रयास किया तो बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट की माने तो कोटा के एक कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले 17 साल के स्‍टूडेंट ने हेल्‍पलाइन पर कॉल करके कहा कि वो सो नहीं पाता। उसे सपनों में दिखता है कि उसकी बायोलॉजी की किताबों से सांप और दूसरे जानवर बा‍हर निकलकर उस पर हमला कर रहे हैं। एक दूसरा स्‍टूडेंट हेल्‍पलाइन पर कॉल करने के मिनट भर बाद ही फूट-फूटकर रोने लगा।
हेल्‍पलाइन की लाइन एक्‍टिव होने के छह घंटे के भीतर 26 कॉल्‍स आ चुकी हैं। एक दिन में अंदाजन 100 कॉल्‍स आए। सभी एक ही कहानी कहती हैं। कोटा की कोचिंग फैक्‍टरी के स्‍टूडेंट्स अब टूट रहे हैं। कोटा में चल रहे 40 से ज्‍यादा कोचिंग संस्‍थानों के एक सामूहिक निकाय ने यह हेल्‍पलाइन शुरू की है। इस हेल्‍पलाइन में तनाव से निपटने में मदद करने वाले तीन एक्‍सपर्ट, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े 10 एक्‍सपर्ट और दो डॉक्‍टर शामिल हैं। हालांकि, यहां मेडिकल और इंजीनियर की तैयारी कर रहे 1.5 लाख स्‍टूडेंट्स के लिए यह नाकाफी है। बता दें कि पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक इस साल अब तक 24 स्‍टूडेंट्स आत्‍महत्‍या कर चुके हैं। इनमें से 17 एलन करियर इंस्‍ट‍िट्यूट के हैं। हेल्‍पलाइन इसी संस्‍था के यहां स्‍थ‍ित है।
पूरे देश से आत है छात्र : देश का एक ऐसा शहर, जिसने पिछले कुछ वर्ष में कोचिंग हब के रूप में सबके बीच मजबूती से अपनी पहचान बनाई । यहां के कोचिंग संस्थानों में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में छात्र-छात्रायें प्रवेश लेते हैं जिनकी एक मात्र यही उद्देश्य होता है की वह मेडिकल या इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में सफल हो सके। आलम यह है की यहां आने वाले लाखों छात्रों में से 20-25% छात्र ही सफल हो पाते हैं। कोटा में कोचिंग करने के लिए 6 राज्यों से कुल 85% छात्र आते हैं । कोचिंग सेंटरों द्वारा एक छात्र से 50 हजार से 1 लाख तक की मोटी रकम जमा कराई जाती है और रहने के लिए हॉस्टल में 7 से 15 हजार रूपये वसूले जाते हैं।आंकड़ों की मैं तो प्रतिवर्ष कोचिंग संस्थानों द्वारा हजारो करोड़ की कमाई की जाती है।
बच्‍चों पर होता है घर का दबाव : सारे कोचिंग संस्‍थानों का पूरा फोकस पढ़ाई पर होता है। यहां बच्‍चों पर अच्‍छा प्रदर्शन करने का जबरदस्‍त दबाव होता है। यहां पढ़ाई के अलावा ऐसे किसी दूसरे क्र‍ियाकलापों के लिए कोई जगह नहीं है, जिससे बच्‍चों पर से दबाव कुछ कम हो। असफल होने वाले स्‍टूडेंट्स के लिए शर्मिंदगी के हालात। कम रैंक वाले बच्‍चों को पीछे की सीटों पर बैठने कहा जाता है।
आरोप है कि टीचर टॉपर्स को ज्‍यादा तरजीह देते हैं।जो बच्‍चे लाख कोशिशों के बावजूद अच्‍छे नंबर नहीं ला पाते, इस अपराध बोध से ग्रसित हैं कि वे अपने घरवालों और अध्‍यापकों की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे। बहुत सारे बच्‍चों को कोचिंग कोर्स ढेरों किताबों और बिना छुट्टी की वजह से बहुत कठिन महसूस होता है। पूरे साल में दीवाली के वक्‍त एक हफ्ते की छुट्टी ही मिलती है। यहां संडे को भी टेस्‍ट होते हैं। इतना कुछ है कि अगर बच्‍चे से एक क्‍लास भी छूट जाए तो वो पिछड़ जाता है!
इन्डियन एक्सप्रेस को दिए इंटरब्यू में बंसल क्‍लासेज के सीईओ प्रमोद बंसल मानते हैं की, ”माता-पिता को भी बच्‍चों का ख्‍याल रखना होगा। अगर कोई बच्‍चा स्‍कूली पढ़ाई में कमजोर था तो वह कोटा के कठिन शैक्षिक माहौल को कैसे झेल पाएगा?” वहीं, करियर प्‍वॉइंट के डायरेक्‍टर प्रमोद माहेश्‍वरी का मानना है की, ”आत्‍महत्‍या करने वाले बच्‍चे भावनात्‍मक तौर पर कमजोर होते हैं। जब वे अपने घरवालों और अध्‍यापकों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाते तो उन्‍हें अपराध बोध होता है। आत्‍महत्‍या की वजह प्रेशर नहीं बल्‍क‍ि यह अपराध बोध है।”
कोचिंग हब के रूप में देश भर में मशहूर कोटा अब फैक्‍ट्री का रूप ले चुका है। जहां छात्रों को कच्‍चा माल समझा जाता है और चौबीसों घंटे बहुमंजिली इमारतों में उनके साथ ‘माल तैयार करने’ की कवायद चलती रहती है। यहां 300 से भी ज्‍यादा कोचिंग इंस्‍टीट्यूट्स हैं। इनमें एलेन, रेजोनेंस, बंसल, वाइब्रैंट और कॅरिअर प्‍वाइंट पांच बड़े इंस्‍टीट्यूट्स हैं। इनके पास डेढ़ लाख से भी ज्‍यादा स्‍टूडेंट्स हैं। इन्‍होंगने इन्‍हें एक ऐसे सिस्‍टम में ढाल दिया है जहां नाकामी का मतलब शर्म, डर और अंतिम अंजाम मौत होती है।
ऐसे हो रहा है एज्‍यूकेशन टूरिज्‍म : पिछले कुछ दिनों से कोटा में हूं। यहां एक और ही तरह का टूरिज्म चल रहा है, वो है education tourism अर्थात् शैक्षणिक पर्यटन। यहां स्टेशन से निकलते ही ऑटो वाला पूछता है मेडिकल या इंजीनियरिंग? फिर वो कोचिंग के लिए और डमी एडमिशन के लिए; दोनों के लिए आपको इंस्टिट्यूट और स्कूल बताता है और वहां ले चलने का प्रपोजल देता है। साफ़ सी बात है कि उसका कमीशन है।
जैसे टूरिस्ट प्लेसेज पर होटल और गाडी की बुकिंग के दलाल होते हैं, यहां स्कूल और कोचिंग के हैं। सिर्फ इतना ही नहीं एक और तरह की दुकाने भी हैं; ये हैं प्रैक्टिकल लैब्स।  जब बच्चा स्कूल जायेगा नहीं और कोचिंग क्लास में प्रैक्टिकल होंगे नहीं तो प्रैक्टिकल की प्रैक्टिस कहां होगी।  वो इन दुकानों पर होगी, जिसकी फीस अलग से देनी होगी. एक और तरह का धंधा भी यहां खूब फल-फूल रहा है वो है स्कूल के प्रोजेक्ट और प्रैक्टिकल की फाइल्स बनाने का।  ये एक नियत शुल्क लेकर बच्चे के साइंस या कम्प्यूटर के प्रोजेक्ट और फिजिक्स कैमिस्ट्री वगैरह की फाइल बना कर देते हैं।
ये है कोटा के शोषण की असली कहानी, इसलिए हो रही आत्‍महत्‍याएं : कोटा की आधे से ज्यादा आबादी ने अपने घर में हॉस्टल खोल रखे हैं। मुश्किल से आठ फुट बाई आठ फुट का कमरा दस हजार रूपये महीने  में मिलता है। जबकि सूरत में थ्री बी एच के का फ्लैट मिलता है दस हजार में।  जहां खाना भी साथ में है वहां बारह से चौदह हजार। बिजली का बिल अलग, और बिजली का बिल भी बाजार भाव से नहीं उसका दो गुना तीन गुणा।
मेरा बेटा जिस हॉस्टल में है, उसमे आठ रूपये प्रति यूनिट वसूली जाती है।  अगर मां;बाप में से कोई बच्चे से मिलने आ गया तो उसके प्रतिदिन के हिसाब से रहने के पैसे अलग भले ही वो सारी असुविधाओ को झेलता हुआ अपने बच्चे के कमरे में ही रहे और अगर अलग कमरे में रहना है तो रेट अलग।  खाने का तो जाहिर सी बात है अतिरिक्त ही होगा। कमरा लेने के वक़्त आपको प्रतिदिन का खाने का मीनू बताया जाता है, लेकिन बाद में रोज परांठे और आचार.! अगर किसी दिन ब्रेड पकोड़ा या मैगी बनी तो मात्रा सीमित कर दी जाती है जैसे कि आप दो ब्रेड पकोड़े से ज्यादा नहीं खा सकते या एक से ज्यादा बार मैगी प्लेट में नहीं ले सकते।
एक सोलह सत्रह साल का बढ़ता हुआ बच्चा सुबह आठ बजे दो ब्रेड पकोड़े खाकर दोपहर दो बजे तक कैसे रहेगा? बाहर रेस्‍टॉरेंट हैं ना,  कुछ तो ऐसे आउटलेट हैं जिनका कोई पता नहीं है सिर्फ मोबाइल नंबर है।  आप रात के तीन बजे भी ऑर्डर कीजिये होम डिलीवरी के माध्यम से खाना मिलेगा,  जब हॉस्टल के खाने से पेट नहीं भरेगा तो बच्चा क्या करेगा। खाने में अधिकांश दिन दाल या सब्जी में से सिर्फ एक ही चीज बनती है,  और हां मजे की बात ये है कि रविवार को मेस बंद रहेगा के साथ साथ मंगलवार को रात के खाने में दाल या सब्जी नहीं बनेगी; मतलब सर्फ परांठे. स्वच्छता का तो नामोनिशान नहीं है मक्खिया भिनभिनाती रहती हैं।
कोचिंग इंस्टिट्यूट की है भरमार  :  कोचिंग इंस्टिट्यूट इतने हैं कि फैसला करने में ही दिमाग ख़राब हो जाए। सब अपने अपने पोस्टर्स पर सबसे ज्यादा सिलेक्शन करवाने का दम भरते हैं। कई बार तो एक ही बच्चे का फोटो एक से ज्यादा इंस्टिट्यूटस ने छापा होता है, ज्यादा इन्क्वायरी करो तो पता चलता है कि “वो स्टडी तो उनके इंस्टिट्यूट में करता था, लेकिन उसने हमारा डिस्टेंस लर्निंग कोर्स लिया हुआ था।
नये  इंस्टिट्यूट अपने पोस्टर्स पर लिखते हैं एक्स फैकल्टी पुराना इंस्टिट्यूट। रोज नये नये इंस्टिट्यूट खुलते जा रहे हैं। लोग बताते हैं कि पहले कोटा में सिर्फ एक इंस्टिट्यूट था, फिर उसके अध्यापको को कोई सेठ ज्यादा पैसे का लालच देकर तोड़कर ले गया और उसने अपना नया इंस्टिट्यूट खोल दिया।
इसी तरह कोटा में अध्यापक ज्यादा और ज्यादा पैसो के लिए इंस्टिट्यूट बदलते रहते हैं और नए नए कोचिंग इंस्टिट्यूट खुलते रहते हैं। आप सोच भी नहीं सकते कि कई अध्यापको की तनख्वाह कई करोड़ प्रति वर्ष है, और इनमे से ज्यादातर चालीस से भी कम उम्र के इंजीनियर हैं जो कि अपने फील्ड में कोई ढंग का जॉब ना मिल पाने के कारण इस फील्ड में आ गए।  विद्यार्थीओ की संख्या हजारो में नहीं लाखो में है।
किसी भी इंस्टिट्यूट की फीस सत्तर-अस्सी हजार रूपये सालाना से कम नहीं है। अरबो खरबों का कारोबार है,  जो बच्चा आपके लिए आपका भविष्य है वो कोटा वालो के लिए सिर्फ एक कस्टमर है। कोचिंग वालो के लिए, हॉस्टल वालो के लिए, स्कूल वालो के लिए, प्रैक्टिकल लैब वालो के लिए, रेस्‍तरां वालो के लिए, साइबर कैफ़े और मोबाइल डाउनलोड वालो के लिए. लूट लो जितना ज्यादा से ज्यादा लूट सकते हो।
आने वाला समय आपसी प्रतियोगिता की दृष्टि से छात्रों के लिए और कठिन होने वाला है इसलिए स्थिति निःसंदेह और भी गभीर हो सकती है जिससे आत्महत्यायों में की गुना इजाफा भी हो सकता है। आंकड़े कुछ भी कहें पर छात्र देश का भविष्य हैं और ऐसा ही रहा हाल रहा तो देश का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

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