जयंती विशेष : इस संघ नेता की कम्‍युनिस्‍ट भी करते थे तारीफ, जेपी ने भी माना था विचार का लोहा..!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अपने निधन से पहले जिनके कंधो पर संघ का कार्यभार सौंपा था। वे माधवराव गोलवरकर थे। उन्हें सब प्रेम से 'गुरू जी' कहकर पुकारते थे। आज ही के दिन 19 फ़रवरी 1906 ई. को नागपुर में हुआ था ।
अखण्डता के विचार के पोषक गुरु जी गुरु जी ने सन् 1940 से 1973 इन 33 वर्षों मे संघ को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। इस कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारप्रणाली को सूत्रबध्द किया। श्री गुरुजी, अपनी विचार शक्ति व कार्यशक्ति से विभिन्न क्षेत्रों एवम् संगठनों के कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणास्रोत बनें। श्री गुरु जी का जीवन अलौकिक था, राष्ट्र जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने मूलभत एवम् क्रियाशील मार्गदर्शन किया। “सचमुच ही श्री गुरूजी का जीवन ऋषि-समान था।”
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भारतवर्ष की अलौकिक दैदीप्यमान विभूतियों की श्रृंखला में श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर का राष्ट्रहित, राष्ट्रोत्थान तथा हिन्दुत्व की सुरक्षा के लिए किए गए सतत् कार्यों तथा उनकी राष्ट्रीय विचारधारा के लिए वे जनमानस के मस्तिष्क से कभी विस्मृत नहीं होंगे। वैसे तो 20वीं सदी में भारत में अनेक गरिमायुक्त महापुरुष हुए हैं, परन्तु श्री गुरुजी उन सब से भिन्न थे, क्योंकि उन जैसा हिन्दू जीवन की आध्यात्मिकता, हिन्दू समाज की एकता और हिन्दुस्थान की अखण्डता के विचार का पोषक और उपासक कोई अन्य न था। श्री गुरुजी की हिन्दू राष्ट्र निष्ठा असंदिग्ध थी।
उनके प्रशंसकों में उनकी विचारधारा के घोर विरोधी कतिपय कम्युनिस्ट तथा मुस्लिम नेता भी थे।  ईरानी मूल के डॉ. सैफुद्दीन जीलानी ने श्री गुरुजी से हिन्दू-मुसलमानों के विषय में बात करते हुए यह निष्कर्ष निकाला, "मेरा निश्चित मत हो गया है कि हिन्दू-मुसलमान प्रश्न के विषय में अधिकार वाणी से यथोचित मार्गदर्शन यदि कोई कर सकता है तो वह श्री गुरुजी हैं।"  निष्ठावान कम्युनिस्ट बुध्दिजीवी और पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. अशोक मित्र के श्री गुरु जी के प्रति यह विचार थे, "हमें सबसे अधिक आश्चर्य में डाला श्री गुरुजी ने। उनकी उग्रता के विषय में बहुत सुना था, किन्तु मेरी सभी धारणाएं गलत निकलीं, इसे स्वीकार करने में मुझे हिचक नहीं कि उनके व्यवहार ने मुझे मुग्ध कर लिया।"
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जयप्रकाश नारायण के अनुसार - पूज्य श्रीगुरुजी तपस्वी थे। उनके संपूर्ण जीवन तपोमय था। हमारे यहां सब आदर्शों में बड़ा आदर्श है त्याग का आदर्श। वे तो त्याग की साक्षात् मूर्ति ही थे। पूज्य महात्मा जी और उनसे पूर्व जन्मे देश के महापुरुषें की परंपरा में ही पूज्य गुरुजी का भी जीवन था। देश की इतनी बड़ी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके एकमात्र नेता श्री गुरुजी। उन्होंने सादगी का आदर्श नहीं छोड़ा, क्योंकि वे जानते थे कि सादगी का आदर्श छोड़ने का स्पष्ट अर्थ है, दूसरे सहस्रों गरीबों के मुंह की रोटी छीन लेना।
श्री पूज्य गुरुजी कर्मठता के मूर्तिमान रूप थे। कर्मठता की कमी है देश में। गुरुजी ने अपने जीवन में कर्मठता का जो आदर्श रखा है, वह अनुकरणीय है। अकाल के समय संघ के स्वयंसेवकों ने जो कार्य किया, वह 'अपूर्व' था। मैं जब भी उसका स्मरण करता हूं, श्रध्दावनत हो जाता हूं।
श्री गुरुजी आध्यात्मिक विभूति थे। यह एक बड़ा बोध है कि हम भारतीय हैं, हमारी हजारों वर्ष पुरानी परंपरा है, भारत का निर्माण भारतीय आधार पर ही होगा। चाहे हम कितने ही 'मॉडर्न' क्यों न हो जाएं। हम अमेरिकी, फ्रेंच, इंग्लिश, जर्मन नहीं कहला सकते, हम भारतीय ही रहेंगे - यह 'बोध', जिसे सहस्रों नवयुवकों में जगाया था पूज्य गुरुजी ने।
(साभार- श्री गुरूजी जन्म शताब्दी अंकविश्व संवाद केन्द्र पत्रिकालखनऊ)
एक बार लोकसभा के कम्युनिस्ट दल के एक प्रमुख नेता ने संघ के एक कार्यकर्ता से पूज्य श्री गुरुजी के विषय में पूछा कि, ''तुम लोग यह कहां हिमालय से पकड़ कर सन्यासी ले आए हो?'' किन्तु जब उन्हें ज्ञात हुआ कि श्री गुरुजी तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रह चुके हैं और वह भी विज्ञान विषय के, तो उन कम्युनिस्ट नेता महाशय जैसे अपने ही बुने हुए जाल में कितने लोग- और वह भी प्रमुख श्रेणी के फंसे हैं, इसी बात का उक्त एक उदाहरण मिला।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ'' के 33 वर्षों तक मार्गदर्शक रहे श्री गुरुजी में जो बहुमुखी प्राक्तन प्रतिभा थी, उनकी गरिमा का आकलन पाना कभी संभव नहीं हो सका। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनमें अग्रणी होने की क्षमता थी। उन्होंने 33 वर्षों तक देश के लाखों तरुणों को मोह-निद्रा से जगाकर देश, धर्म और समाज-सेवार्थ प्रेरित करने का जो बीड़ा उठाया था, उसे अनूठे ढंग से निभाया भी था। आज भी उनकी प्रेरणा लक्ष-लक्ष हृदयों में गुंजायमान है और वही हम सबका पाथेय है। हम उन्हें जितना ही स्मरण करेंगे, हमारा यात्रा-पथ उतना ही प्रशस्त होगा।

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