ये है विश्व का सबसे अनूठा बच्चा, दंग कर देगा 7 साल के इस नन्हे आइंस्टीन का कारनामा..!
किसी ने सच ही कहा है 'होनहार बिरवान के होत सीकने पात' ऐसी ही लोकोक्ति
को जीवन्त किया है, कानपुर शहर के सात वर्षीय नन्हे बालक सास्वत शुक्ल ने
जो वर्तमान समय में कक्षा 6 के छात्र हैं। खास बात यह है की सास्वत ने महज 5
वर्ष 3 माह 14 दिन में (बुद्धि लब्धि) स्तर (I.Q.level) 165 प्राप्त किया
है, जो की मनोवैज्ञानिक परीक्षण के उपरान्त प्रमाणित किया गया था। यह स्तर
वर्तमान समय में इस छोटी से उम्र में संभवतः विश्व में सबसे अधिक है। कुछ
ही दिन पहले अपने आईक्यू लेवल के जरिये चर्चा में आया छोटा सा बालक कौटिल्य
पंडित देखते ही देखते छा गया। ऐसा ही एक बालक कौटिल्य कानपुर में है, जो
बादलों में छिपे सूरज की तरह है।
सास्वत दादानगर की सेवाग्राम कालोनी में पिता सत्येंद्र कुमार शुक्ला ,मां रेखा और बहन सृष्टि के साथ रहता है। मात्र सात साल की उम्र में वह कक्षा छह मे पढ़ रहा है, और उसका आई क्यू लेवल लगभग आइंस्टीन के बराबर 165 है। इस उम्र में वह अखबार ही नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग की किताबें भी बिना रुके ही पढ़ लेता है।
देश के लिए बहुत कुछ करने की चाह रखने वाले सास्वत बड़े होकर वैसे तो एक मनोवैज्ञानिक बनना चाहते हैं, पर जब मैंने उनसे पूछा की आप बड़े होकर कौन सा कार्य करेंगे तो, सारस्वत ने कहा कि मैं 'भिखारियों को अमीर' बनाऊंगा जिससे कोई खाने के लिए ना तरसे। लेकिन सास्वत के इन सभी सपनो में बाधा बन रही है, उनकी गरीबी। पिता घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाते हैं।
सत्येंद्र का कहना है कि इस तरह की विलक्षण प्रतिभा का धनी बालक देश में है, लेकिन न तो सरकार कोई ध्यान दे रही है और न ही प्रशासन। सास्वत को पढ़ाने के लिए सत्येंद्र साइकिल से कई किलोमीटर का सफर प्रतिदिन तय करते हैं। उन्होंने बताया की जब सास्वत का कक्षा दो में एडमीशन कराने के लिए गोविन्द नगर स्थित चाचा नेहरू इंटर कॉलेज में टेस्ट दिलाने की बात की गई, तो कॉलेज प्रबन्धन ने उसकी उम्र देखते हुए कक्षा एक में एडमिशन के लिए कहा।
इसी बीच आईक्यू टेस्ट करने के लिए कैम्प लगाने की बात उन्होंने सुनी। जब सास्वत का आईक्यू टेस्ट किया गया तो 165 निकला। इस लेवल को देख लोगों के होश उड़ गए। इसके बाद सास्वत का एडमिशन बीएनएसडी में सीधे कक्षा चार में किया गया। यकीनन यह चमत्कार ही था।
बहरहाल, इस समय सास्वत चिंटल्स स्कूल में पढ़ रहा है। उसकी प्रतिभा को देखते हुए सत्येंद्र ने कई महीने पैसे जोड़ने के बाद एक पुराना सेट टॉप बॉक्स खरीदा, जिससे वह देश दुनिया से जुड़ा रहे। उन्हें कई राजनीतिक लोगों के साथ-साथ प्रशासन की तरफ से मदद का आश्वासन तो मिला पर आज तक कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
पिता की चिंता का कारण - इतनी आईक्यू लैवल का बच्चा अच्छे या बुरे दोनों क्षेत्रों में चमक सकता है। दिशा थोड़ी सी भी भटकी तो समाज का नुकसान भी हो सकता है , यह बात मनोवैज्ञानिक एनके सक्सेना ने सास्वत के पिता से कही थी। इसी कारण वह चिंतित हैं। उनके अनुसार सास्वत को मिल रहा माहौल उसके अनुरूप नही है। उसे जिन किताबों की जरूरत है जो नहीं मिल रही है। खानपान की दिक्कत अलग से है। यू ट्यूब पर 'वंडर किड विद एक्सेप्शनल आई क्यू-सास्वत' पर सभी कार्यक्रमों की क्लिप देखी जा सकती है।
मदद को आगे आया विप्र संगठन - कुछ ही दिन पहले अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद द्वारा सास्वत की पढ़ाई और उसके समुचित देखभाल के लिए मदद की गई, जिससे उनके पिता सत्येंद्र काफी प्रसन्न दिखे और उन्होंने कहा सास्वत पूरे देश का उज्ज्वल भविष्य है। अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रजनीश शुक्ल का मानना है, कि सास्वत जैसे होनहार बच्चे ही देश के भविष्य हैं, ऐसे में ऐसी विलक्षण प्रतिभा का पूरा ध्यान रखा जाना जरूरी है। उन्होंने कहा हमारा संगठन हमेशा सास्वत और उनके परिवार के साथ खड़ा है।
सास्वत के पिता को मिला नौकरी का प्रस्ताव- 165 आईक्यू लैवल होने के बाद भी मुफलिसी में जीने को मजबूर दादा नगर निवासी सास्वत शुक्ला की आवाज अभी तक सरकार तक नहीं पहुंच पाई है, जबकि कानपुर शहर में समाजवादी पार्टी के पांच विधायक, तीन मंत्री, दो दर्जा प्राप्त मंत्री है और भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी भी यही से सांसद हैं, पर किसी को इस विलक्षण प्रतिभा का ध्यान नहीं। मदद के लिए सत्येंद्र के पास कई फोन आए, जिनमे उनके पास एक जगह से तो नौकरी के लिए भी प्रस्ताव आया जिस पर उन्होंने दस्तावेज भेज दिए। उन्होंने कई दफे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बाबत कई पत्र लिखे हैं, पर अभी तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है।
डॉ. एलके सिंह (मनोवैज्ञानिक) के अनुसार ऐसे बच्चे 0.5 फीसदी होते हैं। इन बच्चों का आईक्यू 16 वर्ष की आयु तक तब ही स्थायी बना रह सकता है, जब उन्हें मानसिक गतिविधि बनाए रखने का मौक़ा मिले। घर का माहौल अच्छा हो। प्रखरता विशेष परीक्षण स्टेन थर्ड बिने (एसबीटी) से आंकी जाती है।
संस्कृत के श्लोक हों या हिंदी अंग्रेजी का अखबार सारस्वत बिना अटके सब कुछ मिनटों में पढ़ जाते हैं, तो गणित के सवाल बिना पेन कॉपी के उंगलियों पर ही हल कर देते हैं। ऐसे होनहार बच्चे का भविष्य आज सरकार की उपेक्षा के कारण अधर में लटका हुआ है। हो सकता है सरकार तक ये बात ना पहुंची हो या हो सकता है, कि सरकार मदद ही ना करना चाहती हो, पर दोनों ही स्थितियों में घाटा देश का होगा, क्योंकि सास्वत जैसे विलक्षण प्रतिभा के धनी बच्चे देश के सुनहरे भविष्य के अगुआ बन सकते हैं।
खैर, मैंने तो महज कुछ ही घण्टे बिताए सास्वत के साथ और उनके पिता द्वारा मुहैया कराई गई अहम जानकारियों और सास्वत के साथ की गई बातचीत को अपने शब्दों में लिख दिया, पर अब आप सभी पाठकों का यह नैतिक दायित्व है कि इस स्टोरी को इतना शेयर करें की सास्वत का आने वाला भविष्य अंधकारमय न हो और ऐसे कोहिनूर हीरे खत्म न हो! शायद देश का ये नन्हा 'आइंस्टीन' सास्वत आगे चलकर पूरे विश्व में भारत माता का गौरव बने, क्योंकि किसी ने सही ही कहा है की पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।
सास्वत दादानगर की सेवाग्राम कालोनी में पिता सत्येंद्र कुमार शुक्ला ,मां रेखा और बहन सृष्टि के साथ रहता है। मात्र सात साल की उम्र में वह कक्षा छह मे पढ़ रहा है, और उसका आई क्यू लेवल लगभग आइंस्टीन के बराबर 165 है। इस उम्र में वह अखबार ही नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग की किताबें भी बिना रुके ही पढ़ लेता है।
देश के लिए बहुत कुछ करने की चाह रखने वाले सास्वत बड़े होकर वैसे तो एक मनोवैज्ञानिक बनना चाहते हैं, पर जब मैंने उनसे पूछा की आप बड़े होकर कौन सा कार्य करेंगे तो, सारस्वत ने कहा कि मैं 'भिखारियों को अमीर' बनाऊंगा जिससे कोई खाने के लिए ना तरसे। लेकिन सास्वत के इन सभी सपनो में बाधा बन रही है, उनकी गरीबी। पिता घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाते हैं।
सत्येंद्र का कहना है कि इस तरह की विलक्षण प्रतिभा का धनी बालक देश में है, लेकिन न तो सरकार कोई ध्यान दे रही है और न ही प्रशासन। सास्वत को पढ़ाने के लिए सत्येंद्र साइकिल से कई किलोमीटर का सफर प्रतिदिन तय करते हैं। उन्होंने बताया की जब सास्वत का कक्षा दो में एडमीशन कराने के लिए गोविन्द नगर स्थित चाचा नेहरू इंटर कॉलेज में टेस्ट दिलाने की बात की गई, तो कॉलेज प्रबन्धन ने उसकी उम्र देखते हुए कक्षा एक में एडमिशन के लिए कहा।
इसी बीच आईक्यू टेस्ट करने के लिए कैम्प लगाने की बात उन्होंने सुनी। जब सास्वत का आईक्यू टेस्ट किया गया तो 165 निकला। इस लेवल को देख लोगों के होश उड़ गए। इसके बाद सास्वत का एडमिशन बीएनएसडी में सीधे कक्षा चार में किया गया। यकीनन यह चमत्कार ही था।
बहरहाल, इस समय सास्वत चिंटल्स स्कूल में पढ़ रहा है। उसकी प्रतिभा को देखते हुए सत्येंद्र ने कई महीने पैसे जोड़ने के बाद एक पुराना सेट टॉप बॉक्स खरीदा, जिससे वह देश दुनिया से जुड़ा रहे। उन्हें कई राजनीतिक लोगों के साथ-साथ प्रशासन की तरफ से मदद का आश्वासन तो मिला पर आज तक कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
पिता की चिंता का कारण - इतनी आईक्यू लैवल का बच्चा अच्छे या बुरे दोनों क्षेत्रों में चमक सकता है। दिशा थोड़ी सी भी भटकी तो समाज का नुकसान भी हो सकता है , यह बात मनोवैज्ञानिक एनके सक्सेना ने सास्वत के पिता से कही थी। इसी कारण वह चिंतित हैं। उनके अनुसार सास्वत को मिल रहा माहौल उसके अनुरूप नही है। उसे जिन किताबों की जरूरत है जो नहीं मिल रही है। खानपान की दिक्कत अलग से है। यू ट्यूब पर 'वंडर किड विद एक्सेप्शनल आई क्यू-सास्वत' पर सभी कार्यक्रमों की क्लिप देखी जा सकती है।
मदद को आगे आया विप्र संगठन - कुछ ही दिन पहले अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद द्वारा सास्वत की पढ़ाई और उसके समुचित देखभाल के लिए मदद की गई, जिससे उनके पिता सत्येंद्र काफी प्रसन्न दिखे और उन्होंने कहा सास्वत पूरे देश का उज्ज्वल भविष्य है। अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रजनीश शुक्ल का मानना है, कि सास्वत जैसे होनहार बच्चे ही देश के भविष्य हैं, ऐसे में ऐसी विलक्षण प्रतिभा का पूरा ध्यान रखा जाना जरूरी है। उन्होंने कहा हमारा संगठन हमेशा सास्वत और उनके परिवार के साथ खड़ा है।
सास्वत के पिता को मिला नौकरी का प्रस्ताव- 165 आईक्यू लैवल होने के बाद भी मुफलिसी में जीने को मजबूर दादा नगर निवासी सास्वत शुक्ला की आवाज अभी तक सरकार तक नहीं पहुंच पाई है, जबकि कानपुर शहर में समाजवादी पार्टी के पांच विधायक, तीन मंत्री, दो दर्जा प्राप्त मंत्री है और भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी भी यही से सांसद हैं, पर किसी को इस विलक्षण प्रतिभा का ध्यान नहीं। मदद के लिए सत्येंद्र के पास कई फोन आए, जिनमे उनके पास एक जगह से तो नौकरी के लिए भी प्रस्ताव आया जिस पर उन्होंने दस्तावेज भेज दिए। उन्होंने कई दफे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बाबत कई पत्र लिखे हैं, पर अभी तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है।
डॉ. एलके सिंह (मनोवैज्ञानिक) के अनुसार ऐसे बच्चे 0.5 फीसदी होते हैं। इन बच्चों का आईक्यू 16 वर्ष की आयु तक तब ही स्थायी बना रह सकता है, जब उन्हें मानसिक गतिविधि बनाए रखने का मौक़ा मिले। घर का माहौल अच्छा हो। प्रखरता विशेष परीक्षण स्टेन थर्ड बिने (एसबीटी) से आंकी जाती है।
संस्कृत के श्लोक हों या हिंदी अंग्रेजी का अखबार सारस्वत बिना अटके सब कुछ मिनटों में पढ़ जाते हैं, तो गणित के सवाल बिना पेन कॉपी के उंगलियों पर ही हल कर देते हैं। ऐसे होनहार बच्चे का भविष्य आज सरकार की उपेक्षा के कारण अधर में लटका हुआ है। हो सकता है सरकार तक ये बात ना पहुंची हो या हो सकता है, कि सरकार मदद ही ना करना चाहती हो, पर दोनों ही स्थितियों में घाटा देश का होगा, क्योंकि सास्वत जैसे विलक्षण प्रतिभा के धनी बच्चे देश के सुनहरे भविष्य के अगुआ बन सकते हैं।
खैर, मैंने तो महज कुछ ही घण्टे बिताए सास्वत के साथ और उनके पिता द्वारा मुहैया कराई गई अहम जानकारियों और सास्वत के साथ की गई बातचीत को अपने शब्दों में लिख दिया, पर अब आप सभी पाठकों का यह नैतिक दायित्व है कि इस स्टोरी को इतना शेयर करें की सास्वत का आने वाला भविष्य अंधकारमय न हो और ऐसे कोहिनूर हीरे खत्म न हो! शायद देश का ये नन्हा 'आइंस्टीन' सास्वत आगे चलकर पूरे विश्व में भारत माता का गौरव बने, क्योंकि किसी ने सही ही कहा है की पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।
Comments
Post a Comment