जेएनयू मामला : राहुल गांधी-केजरीवाल की अब तक की सबसे बड़ी गलती, भारी पड़ी सियासत..!
लेखक राजीव सचान अपने एक लेख में लिखते हैं, कि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वालों के बचाव में एक कुतर्क यह भी है पेश किया जा रहा है कि वहां इस तरह का काम पहले भी होता रहा है। जैसे 2010 में छत्तीसगढ़ में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या पर खुशी जताई जा चुकी है। एक अन्य कुतर्क यह भी है कि कश्मीर घाटी में भी अफजल के समर्थन में नारें लगते हैं। क्या यह कहने की कोशिश हो रही है कि अगर ऐसे ही नारे देश में भी लगे तो भी हर्ज नही ?
बरहाल, राष्ट्रविरोधी नारे लगाना एक लोकतान्त्रिक देश में कुछ लोगो की नजर शायद ही छोटा अपराध हो, पर देश के सच्चे नागरिक के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि उसके अपने देश में ही देश विरोधी नारे लगाएं जाएं। इससे बड़ा अपराध क्या होगा? अब देश के सम्मान से बढ़कर भी कोई राजनीति मायने रखती है क्या? पर शायद कुछ नेताओं और उनकी पार्टियों को हर मुद्दे पर विरोध की राजनीति करने का चस्का ही लग गया है, ऐसे में उनसे किसी सार्थक और क्रियात्मक सोच की उम्मीद करना बेमानी ही होगा, क्योंकि शायद ऐसे नेता अपने पौरुष पर नहीं, बल्कि कुछ विकलांग और विक्षिप्त मानसिकता के लोगों के बल पर ही ऐसा व्यवहार करते हैं।
निश्चित ही यह सोचने वाली बात है की राहुल गांधी और केजरीवाल हफीज सईद (देश सबसे बड़ा गद्दार) जैसा बयान देकर क्या साबित कर रहे हैं ? बात अब केवल मोदी के विरोध तक ही सीमित नही रह गई, बल्कि अब इन जैसे कुछ एक नेताओं की कार्यशैली से देश विरोधी राजनीति की भी बू आने लगी है। अब ऐसे में अगर इनका यही व्यवहार जारी रहा, तो जल्दी ही इनकी गिनती भी दिग्विजय सिंह और उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं में होने लगेगी जिनके बयान जनता के बीच संता-बंता के जोक्स की तरह ही अपनी पहचान रखते हैं।
यकीनन इस बात में कोई दो राय नहीं कि कम से कम जब देश के स्वाभिमान की रक्षा की बात आए तब तो सभी को एक मंच पर आकर इन राष्ट्रविरोधी ताकतों का विरोध करना चाहिए, जिससे दूसरे देशों में भी हमारे देश के अंदर की राजनीतिक शक्ति का एकीकरण दिख सके। अगर ऐसा ही क्रम चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब हमें अपने ही देश में ऐसे अराजक मानसिकता वाले राष्ट्रविरोधी तत्वों से जूझना पड़ेगा, जिसका भावी परिणाम शायद ही हमारे पक्ष में हो।
मुझे तो यहां तक लगता है की जब तक ऐसे कुछेक नेता और उनकी पार्टियां देश की राजनीति और समाज को गर्त में पहुंचा देंगी तब तक इन्हें चैन की सांस नही मिलेगी, जिस ढंग से राष्ट्र की अस्मिता का माखौल उड़ाकर पाक प्रायोजित आतंकवाद और आतंकियों के समर्थन में कुछ राष्ट्रद्रोही बयानबाजी कर रहे हैं, वह बेहद घ्रणित है। लाखों शहीद हुई आत्माओं का अपमान है।
इसी तरह यह भी बहस का विषय है कि क्या ऐसे नारे लगाने वालों पर देशद्रोह का ही मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए? यह बहस सही दिशा में तभी आगे बढ़ सकती है कि जब बौद्धिक बेईमानी का परित्याग किया जाए। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इस प्रकार की गतिविधियों को हतोत्साहित करने की जरूरत है। कड़ी से कड़ी बेहिचक कार्यवाही करने की जरूरत है।
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