मेरे अंदर के पाठक ने मुझे लेखक बनाया....
#मुलाक़ात : लेखिका छाया सिंह
अभी जल्दी ही आपसे जुड़ा । आपकी कहानियां पढ़ीं । इसी बीच आपकी लिखी कहानी पर बनी लघु फिल्म 'और्जित्या' भी देखी । आज आपसे मुलाक़ात भी हो गई । जैसी मिठास और सरलता आपकी लेखनी में है वैसे ही आपका स्वाभाव । कई विषयो पर आपसे बातचीत हुई । सबसे खास बात यह रही की हर विषय में आपकी सोंच सकारात्मक थी जो की अद्वितीय है । आपकी मेहमाननवाजी ने तो पेट से ह्रदय तक भर दिया । बुन्देलखण्ड में पिछले कई दशक से गद्य विधा मर सी गई थी लेकिन आपकी कहानियो ने उसे पुनः जीवित कर दिया । बुन्देलखण्ड कनेक्ट मैगजीन के मई माह के अंक में आपकी कहानी 'बनफूल' पढ़ी थी । आपकी कहानियों में सरलता है सहजता है जो पाठक को बांध लेता है ।
आज की मुलाकात बहुत ही कम समय की थी लेकिन आपके बारे में खुद आपसे काफी जानने और समझने को मिला । अभी भी मुझे याद है जब आपने कहा कि 'मेरे अंदर के पाठक ने मुझे लेखक बनाया' । सच में खुद का ये भावनात्मक एहसास अदभुत है । समाज में एक लोकोक्ति प्रसिद्द है कि 'एक अच्छा श्रोता ही एक अच्छा वक्ता'होता है उसी प्रकार एक अच्छा पाठक ही एक अच्छा लेखक होता है । बातों ही बातों में मैंने आपसे पूछ ही लिया की आप किस 'वाद' की लेखिका हैं । आप मेरा मतलब तो समझ ही गईं थी लेकिन बावजूद इसके आपने बड़े ठहराव और जिम्मेदार लेखक की तरह जवाब दिया । जी नही , मैं किसी भी वाद के प्रभाव में आकर लेखन नही करती । मुझे सिर्फ लिखना पसन्द है किसी प्रकार का बंधन नही । सच ही कहा आपने लेखनी किसी वाद की गुलाम नही ।
आपसे समाज के कई ज्वलन्त मुद्दों पर बातचीत हुई जिसमें महिलाओं पर लगातार हो रहे अत्याचार के विषय में आपकी राय स्पष्ट थी कि समाज को अपनी सोंच में परिवर्तन करना होगा क्योंकि सोंच का दोहरापन ही इसके लिए जिम्मेदार है । अब मैं खिलाई मिठाई , समोसे , नमकीन और चाय कैसे भूल सकता हूँ । फिर बड़े भैया का स्वभाव देखकर जाना की महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक क्यों कहलाते हैं ।
आपके परिवार के सभी सदस्यों में आपकी झलक देखने को मिलती है वही सरलता , सहजता ,ईमानदारी और ढेर सारा अपनापन । उम्र के तीसरे पड़ाव में आपने कलम पकड़कर ये साबित कर दिया है कि महिला अगर कुछ ठान ले तो वह कर सकती है । अभी आपको साहित्य को बहुत कुछ देना है । ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आप यूहीं लिखती रहीं और बुन्देलखण्ड को गौरान्वित करती रहें ।
√अनुज हनुमत
अभी जल्दी ही आपसे जुड़ा । आपकी कहानियां पढ़ीं । इसी बीच आपकी लिखी कहानी पर बनी लघु फिल्म 'और्जित्या' भी देखी । आज आपसे मुलाक़ात भी हो गई । जैसी मिठास और सरलता आपकी लेखनी में है वैसे ही आपका स्वाभाव । कई विषयो पर आपसे बातचीत हुई । सबसे खास बात यह रही की हर विषय में आपकी सोंच सकारात्मक थी जो की अद्वितीय है । आपकी मेहमाननवाजी ने तो पेट से ह्रदय तक भर दिया । बुन्देलखण्ड में पिछले कई दशक से गद्य विधा मर सी गई थी लेकिन आपकी कहानियो ने उसे पुनः जीवित कर दिया । बुन्देलखण्ड कनेक्ट मैगजीन के मई माह के अंक में आपकी कहानी 'बनफूल' पढ़ी थी । आपकी कहानियों में सरलता है सहजता है जो पाठक को बांध लेता है ।
आज की मुलाकात बहुत ही कम समय की थी लेकिन आपके बारे में खुद आपसे काफी जानने और समझने को मिला । अभी भी मुझे याद है जब आपने कहा कि 'मेरे अंदर के पाठक ने मुझे लेखक बनाया' । सच में खुद का ये भावनात्मक एहसास अदभुत है । समाज में एक लोकोक्ति प्रसिद्द है कि 'एक अच्छा श्रोता ही एक अच्छा वक्ता'होता है उसी प्रकार एक अच्छा पाठक ही एक अच्छा लेखक होता है । बातों ही बातों में मैंने आपसे पूछ ही लिया की आप किस 'वाद' की लेखिका हैं । आप मेरा मतलब तो समझ ही गईं थी लेकिन बावजूद इसके आपने बड़े ठहराव और जिम्मेदार लेखक की तरह जवाब दिया । जी नही , मैं किसी भी वाद के प्रभाव में आकर लेखन नही करती । मुझे सिर्फ लिखना पसन्द है किसी प्रकार का बंधन नही । सच ही कहा आपने लेखनी किसी वाद की गुलाम नही ।
आपसे समाज के कई ज्वलन्त मुद्दों पर बातचीत हुई जिसमें महिलाओं पर लगातार हो रहे अत्याचार के विषय में आपकी राय स्पष्ट थी कि समाज को अपनी सोंच में परिवर्तन करना होगा क्योंकि सोंच का दोहरापन ही इसके लिए जिम्मेदार है । अब मैं खिलाई मिठाई , समोसे , नमकीन और चाय कैसे भूल सकता हूँ । फिर बड़े भैया का स्वभाव देखकर जाना की महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक क्यों कहलाते हैं ।
√अनुज हनुमत
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