जेएनयू मुद्दे से मिल रहे खतरनाक संकेत, कहीं ये खतरा न हो जाए देश के लिए..!
कहते हैं की जब कहीं भीषण आग लगती है, तो उसकी तपिश आस पास के इलाकों में देखने को मिलती है। जेएनयू की घटना का प्रभाव वैसे तो देश के कई भागों में दिखाई पड़ रहा है और अब इस आग की आंच पहले संगम नगरी इलाहाबाद में भी पहुंची, जहां पटियाला कोर्ट में वकीलों द्वारा किए गए बवाल को दोहराया गया। बस अंतर इतना था की वहां वकीलों ने आरोपी कन्हैया के साथ मारपीट की थी, और यहां वकीलों ने वामपंथियों के कुछ सहयोगी संगठन, जो आरोपियों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे थे, उनके साथ मारपीट की। इस घटना को भी विस्तार से जानना आवश्यक है क्योंकि इसका मूल विषय एक ही है।
जिला अदालत के वकीलों ने गुरुवार को कुछ लोगों के समूह को कथित तौर पर पीटा, जो जेएनयू में छात्र नेताओं पर राजद्रोह के आरोप लगाए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। करनैलगंज पुलिस थाने के प्रभारी समीर सिंह ने बताया कि यह घटना दोपहर में हुई। वकीलों के एक समूह ने प्रदर्शनकारियों को पीटा। प्रदर्शनकारियों में वाम दलों से संबद्ध ट्रेड यूनियन नेता और छात्र नेता थे, जो जेएनयूएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई का विरोध कर रहे थे।
प्रशासन की अनुमति के बिना निकाला जुलूस- सिंह ने कहा कि जब प्रदर्शनकारी जिला अदालत परिसर से गुजरे तब वकीलों ने उन पर कथित तौर पर हमला किया। उन्होंने बताया कि कुछ प्रदर्शनकारियों को मामूली चोटें आई हैं, और उन्होंने शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है क्योंकि वह लोग जिला प्रशासन से पूर्व अनुमति लिए बिना जुलूस निकाल रहे थे। कुल मिलाकर इस घटना ने भी एक बार फिर न्यायपालिका को शर्मिन्दा किया है, ऐसे में हाईकोर्ट का कहना है कि ऐसे सभी वकीलों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।
वैसे प्रथम दृष्टया तो यह कार्य गलत लगता है पर अगर गहनता से सोचा जाए तो ये देशप्रेम का भी मामला है क्योंकि कोई भी देशप्रेमी यह कतई पसन्द नहीं करेगा की कोई उसके देश के खिलाफ कुछ अपशब्द बोले । ऐसे में वकीलों द्वारा प्रदर्शित किया गया गुस्सा भी इस लोकतन्त्र में अपना एक अलग पक्ष रखता है, जहां जेएनयू में नारे लगाने वाले अभियुक्त अपने ऊपर लगे 'देशद्रोह' केस के लिए सीधे सीधे मौजूदा केंद्र सरकार को दोषी मानते हैं, उनका कहना है सरकार हमारी आवाज को दबाना चाहती है।
वैसे जिन प्रदर्शनकारियों ने इलाहाबाद में जेएनयू घटना के पक्ष मे मार्च निकाला उन्हें भी समझना होगा की देश अपना है और फिर ऐसी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का क्या मतलब जिसकी कीमत देश की अखण्डता तार तार करके चुकाई जाए। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, शायद इसीलिए वकीलों ने भी अब ऐसा ही एक तीर अपने तरकश से निकाला है जिसके तहत वह अपने देशप्रेम को जगजाहिर करके खुद को सर्वोत्तम देशभक्त प्रदर्शित करना चाहते हैं।
कुछ भी हो पर इसकी शुरुआत जेएनयू कैम्पस से हुई है, अब यह आग पूरे देश में फ़ैल चुकी है सभी नागरिक भयंकर गुस्से में हैं क्योकि किसी को भारत माता के खिलाफ अपशब्द मंजूर नही फिर वकील भी देश के नागरिक हैं और अगर देशभक्ति की ये मशाल 'वकीलों' ने अपने हाथ में थाम ली है तो गुरेज ही क्या? वैसे वकीलों ने विरोध का जैसा रास्ता अपनाया वो एक लोकतान्त्रिक देश के इन सैनिकों (न्यायपालिका) को शोभा नही देता। वैसे भी हमारे देश की देशभक्ति रूस ,चीन और दक्षिण कोरिया जैसी नही जहाँ देशद्रोह के लिए केवल एक ही सजा है और वो है 'मृत्युदण्ड'!
हमारा भारत एक ऐसा लोकतान्त्रिक देश है, जहां ऐसा कृत्य जायज नहीं क्योकि यहां की संस्कृति का प्राण अनेकता में एकता में बसता है। पर अब देश की भलाई के लिए कुछ कानूनों में बड़ें बदलाव करने की आवश्यकता है, तभी ऐसे देशविरोधी कृत्य बन्द होंगे। ऐसे देशविरोधी कार्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम देकर अपना राजनीतिक कुर्ते चमकाने वाले नेताओं को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए नहीं तो आने वाले समय ऐसी ही नेता देश की बर्बादी का कारण बनेंगे।पूरा ब्लॉग पढ़ने के लिए लिंक खोले -
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