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#चित्रकूट : डकैतों के गढ़ में शुरू हुई पाठा की पाठशाला

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स्पेशल रिपोर्ट- डकैतों के गढ़ में पाठा की पाठशाला     इस समय खाकी द्वारा बुन्देलखण्ड के बीहड़ इलाके पाठा में चलाई जा रही "पाठा की पाठशाला" मुहीम की जबरदस्त सराहना हो रही है । इस मुहीम ने आदिवासी इलाकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने में अलग तरह की सफलता अर्जित की है । असल मायनो में इस पाठशाला ने खाकी के प्रति इन आदिवासियों की सोंच में काफी बदलाव किया है । कहीं न कहीं इस कार्यक्रम के कारण खाकी भी आम जनमानस के करीब आई है । चित्रकूट पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के निर्देशन में मानिकपुर थानाप्रभारी केपी दुबे के अगुवाई में डकैत प्रभावित निहि गांव से शुरू हुई पाठा की पाठशाला ने देखते ही देखते बडी मुहीम का स्वरूप तैयार कर लिया । इस कार्यक्रम के तहत पुलिस द्वारा एक अतिपिछडे गांव का चयन किया जाता है जहां स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा हो । फिर गांव में सुबह सुबह स्कूल की ही टाइमिंग पर खुले आसमान के नीचे शुरू होती है खाकी की अदभुत और अविष्मरणीय पाठशाला ,जहां बच्चों को पढाई के बारे में जागरूक किया जाता है और उन्हें गिनती ,पहाड़ा ,ककहरा और कवितायें सिखाकर

Banda-Chitrakoot : क्यों खामोश हैं जनता ? कोई बड़ा परिवर्तन या फिर वापस वही लहर !

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Banda Chitrakoot    ऐसा पहली बार देख रहा हु की लोकसभा का चुनाव ,बुन्देलखण्ड की इस सीट पर खामोश रुख अख्तियार किये हुए है । जनता की ये खामोशी किसी बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रही है । प्रत्याशियों द्वारा प्रचार करने का भी ज्यादा असर वोटर्स के मूड को बदल नहीं पा रहा है । इस बार मूलभूत समस्यायों को लेकर ग्रामीण इलाकों में सियासी दलों और उनके नुमाइंदों के प्रति जनाक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है ।  एक के बाद एक तमाम गांव अपनी समस्यायों को लेकर वोट बहिष्कार का निर्णय ले रहे हैं । इस तरह के गांवो की संख्या पाठा में अधिक है । ऐसे में बाँदा चित्रकूट संसदीय सीट के चुनाव में पाठा क्षेत्र महती भूमिका निभा सकता है । फिलहाल इस क्षेत्र में न तो भाजपा ,न तो गठबंधन और न ही कांग्रेस का मजबूत जनसम्पर्क दिख रहा है । चुनाव से पहले यहां के कई मुद्दे अपनी जड़ें जमा चुके थे लेकिन सियासी दलों ने जातिगत समीकरणों में उलझा कर इस चुनाव से जनता से सरोकार रखने वाले हर मुद्दों की हवा निकाल दी । पेयजल की समस्या , पलायन का मुद्दा, रोजगार की समस्या , शिक्षा की बदहाल व्यवस्था , पर्यटन की मुख्य धारा से जोड़ने का मुद्

अच्छी पहल : वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये प्रशासन से ग्रामीण हुए रूबरू

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चित्रकूट । जहां समूचे देश मे पीएम मोदी के महत्वाकांक्षी प्लान 'डिजिटल इंडिया' का प्रचार प्रसार तेजी से किया जा रहा है । वहीं एक बात ये भी सच है कि अभी भी इसकी पहुंच से सूदूर गांव के ग्रामीण दूर हैं । फिलहाल डिजिटल इंडिया के बढ़ते दायरे ने अधिकांश गांवो तक मोबाइल इंटरनेट की सेवा पहुंचा दी है । ऐसे में ग्रामीण इलाकों में हर हाथ मे मोबाइल की पहुंच होने से प्रशासन के साथ संवाद तेजी से बढ़ रहा है । ऐसी ही एक मुहीम के बारे में मेरे दिमाग मे स्वतः ही आया । मैंने फौरन जिलाधिकारी महोदय से बात की और बुन्देलखण्ड के अतिपिछड़े चित्रकूट जनपद में इसकी शुरूआट करने की सोंची । इस मुहीम में बड़ा सहयोग मिला जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर और पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा का । दोनों ने मुहीम को अपनाते हुए सूदूर ग्रामीण इलाकों में बैठे ग्रामीणों से वीडियो कॉलिंग के तहत फेस टू फेस बात करते हुए उनकी समस्याएं जानी । समूचे सूबे में ये पहला मौका था की जब किसी जिले के ग्रामीण इलाके से ग्रामीणों ने मोबाइल की मदद से सीधे कई किमी दूर बैठकर जिलाधिकारी और एसपी से सीधा संवाद स्थापित करते हुए अपनी समस्याएं साझा की ।

स्पेशल रिपोर्ट - ये चित्र कहीं राम के आने के संकेत तो नही !

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प्रथम दृष्टया चित्रों को देखकर लगता है मानो ये चित्र भर नहि बल्कि उस समय भगवान राम के आने के संकेत हैं । इन हजारो वर्ष पुराने चित्रों में धनुष बाण लिए अदम्य साहस का परिचय दे रहे कई योद्धा दिख रहे हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट में पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही युवा पत्रकार अनुज हनुमत की टीम को आम जनमानस का जबरदस्त सहयोग मिल रहा है । आपको बता दें कि इससे पहले इस टीम की मुहीम पर ही पाठा के खम्भेश्वर पहाड़ी में स्थित हजारो वर्ष पुराने शैलचित्रों को यूपी सरकार ने सरंक्षित करने के निर्देश दिये हैं । पाठा के सरहट में मिले चित्रों से मऊ के ऋषियन में चित्र कहीं ज्यादा समृद्धशाली हैं । जी हां भूरा दाई की पथरी मे प्रागैतिहासिक काल के शिलाचित्र मिलने से एक बार फिर हड़कम्प मच गया है । ग्रामीणों और युवाओं की जागरूकता से ये मुमकिन हुआ । मऊ तहसील के पूरब-पताई ग्राम के निकट ऋषियन आश्रम के जंगल में चाँदाटाक की चोटी के नीचे प्रागैतिहासिक काल के शिलाचित्र मिले हैं । शशीकान्त सिंह,दिनेश कुमार,हेमराज सिंह,संदीप उपाध्याय,अनुपम सिंह,कपिल सिंह,रूद्र प्रताप सिंह,दल प्रताप

चित्रकूट - राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) की तीन सदस्यीय टीम ने किया राजकीय महाविद्यालय मानिकपुर का दौरा

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पाठा के लिए गौरव का विषय - रास्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षण संस्थानों की शैक्षिक गुणवत्ता की रेटिंग तय करने वाली 'NACC PEER TEAM' ने राजकीय महाविद्यालय का किया निरीक्षण मानिकपुर/ चित्रकूट -  राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) एक संस्थान है जो भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों का आकलन तथा प्रत्यायन (मान्यता) का कार्य करती है। मूल्यांकन एवं प्रत्यायन को मूलतः किसी भी शैक्षिक संस्था की ‘गुणवत्ता की स्थिति’ को समझने के लिए प्रयोग किया जाता है। वास्तव में यह मूल्यांकन यह निर्धारित करता है कि कोई भी शैक्षिक संस्था या विश्वविद्‌यालय प्रमाणन एजेंसी के द्‌वारा निर्धारित गुणवत्ता के मानकों को किस स्तर तक पूरा कर रहा है। इसी क्रम में NACC की तीन सदस्यीय टीम ने राजकीय महाविद्यालय मानिकपुर का द्विदिवसीय दौरा कर निरीक्षण किया । अपने दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन पीयर टीम ने महाविद्यालय के शेष विभाग, भौतिकी, कामर्स, अर्थशास्त्र, हिन्दी, समाज शास्त्र एवं राजनीति शास्त्र विभागों का निरीक्षण किया गया ।उक्त के उपरांत लाइब्रेरी, ई लाईब्रेरी, वाचनालय ,कार्यालय एवं विभिन्न महत्वपूर्ण 

#VisitMountAbu / चंद्रावती - "हजारों वर्ष पुराना ऐसा शहर जो आज भी जिंदा है...."

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  आप कल्पना भी नही कर सकते हैं कि हजारो वर्ष पुराना एक ऐसा शहर भी है जो गांव के रूप में जिंदा है । यकीन करना मुश्किल है लेकिन ये एक ऐतिहासिक सत्य है । राजस्थान के छोटे से जिले सिरोही के नगर पंचायत आबू रोड से महज 6 किमी दूर स्थित है वर्तमान का चंदेला गांव । जी हां इसी गांव में हजारो वर्ष पूर्व परमार राजवंश का पूर्ण वैभव समेटे चंद्रावती शहर हुआ करता था । इतिहासकार मानते हैं कि वो समय परमार वंश के पूर्ण वैभव का समय था । मैं भी इतिहास का छात्र रहा हूँ जिस कारण जब भी कहीं  घूमने जाता हूँ सबसे पहले ऐतिहासिक तथ्यों की खोज में लग जाता हूँ । इसी तरह जैसे ही मैं माउंट आबू की यात्रा में निकला दिमाग मे कई ऐतिहासिक तथ्यों से भरे स्थान अपनी कहानी बयां कर रहे थे । जैसे ही आबू रोड पहुँचे सबसे पहले चंद्रावती की तरफ ध्यान गया । फिर क्या माउंट आबू पर्वत चढ़ने से ही पहले बैग उठाया और निकला पड़ा उस शहर की तलाश में जिसका अस्तित्व हजारो वर्ष पहले हुआ करता था । लेकिन आज सिर्फ वहाँ खंडहर और टूटी फूटी मूर्तियां ही शेष हैं । चंद्रावती - आबू रोड से 6 किमी. दूर चंद्रावती परमारों का शहर था। इसका वर

#Visit Mount Abu - विंध्य से अरावली की पहाड़ियों तक का सफर ...कुछ खास है

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यात्रा वृतांत - विंध्य की पहाड़ियों से अरावली की दुर्गम पहाड़ियों तक कुछ खास है .... चारो तरफ फैली प्राकृतिक शांति यूँ तो मेरी उम्र का काफिला 24 के पड़ाव तक पहुंच चुका है लेकिन घूमने का शौक शायद इससे भी पुराना है । अभी तक भारत देश के हजारो किमी रास्ते का सफर तय कर चुका हूं । जिंदगी में सिर्फ एक यही 'घूमने' का शौक है जिसमे कदम बढ़ाने के बाद कभी थकावट महसूस नही होती । हमेशा किताबो में पढ़ा करता था कि ऊंची ऊंची पहाड़ियों में बसने वाला जीवन बहुत ही सुंदर और सभ्य होता है।  वैसे तो मैं भी विंध्य की ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरे #पाठा इलाके का निवासी हूँ । लेकिन बावजूद इसके शायद यही कारण है कि मुझे इन पहाड़ो ने हमेशा अपनी तरफ खींचा है । चाहे उत्तराखण्ड की यात्रा रही हो , चाहे मध्य प्रदेश -छत्तीसगढ़ की या फिर राजस्थान की यात्रा -हमेशा पहाड़ी इलाकों की खूबसूरती ने यहाँ की शांति ने अपनी ओर खींचा है । अचानक से माउंट आबू जाने का प्लान बना । राजस्थान प्रदेश का इकलौता हिल स्टेशन माउंट आबू । फिर क्या इंटरनेट में जांच पड़ताल शुरू । वैसे तो बचपन से लेकर अभी तक माउंट आबू का जिक्र सिर्फ किताबों म