Banda-Chitrakoot : क्यों खामोश हैं जनता ? कोई बड़ा परिवर्तन या फिर वापस वही लहर !

Banda Chitrakoot



   ऐसा पहली बार देख रहा हु की लोकसभा का चुनाव ,बुन्देलखण्ड की इस सीट पर खामोश रुख अख्तियार किये हुए है । जनता की ये खामोशी किसी बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रही है । प्रत्याशियों द्वारा प्रचार करने का भी ज्यादा असर वोटर्स के मूड को बदल नहीं पा रहा है । इस बार मूलभूत समस्यायों को लेकर ग्रामीण इलाकों में सियासी दलों और उनके नुमाइंदों के प्रति जनाक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है ।

 एक के बाद एक तमाम गांव अपनी समस्यायों को लेकर वोट बहिष्कार का निर्णय ले रहे हैं । इस तरह के गांवो की संख्या पाठा में अधिक है । ऐसे में बाँदा चित्रकूट संसदीय सीट के चुनाव में पाठा क्षेत्र महती भूमिका निभा सकता है ।

फिलहाल इस क्षेत्र में न तो भाजपा ,न तो गठबंधन और न ही कांग्रेस का मजबूत जनसम्पर्क दिख रहा है । चुनाव से पहले यहां के कई मुद्दे अपनी जड़ें जमा चुके थे लेकिन सियासी दलों ने जातिगत समीकरणों में उलझा कर इस चुनाव से जनता से सरोकार रखने वाले हर मुद्दों की हवा निकाल दी ।

पेयजल की समस्या , पलायन का मुद्दा, रोजगार की समस्या , शिक्षा की बदहाल व्यवस्था , पर्यटन की मुख्य धारा से जोड़ने का मुद्दा , डकैत उन्मूलन जैसे विषयों पर कोई बात नही कर रहा है और न ही इन बातों को लेकर जनता से रुबरु हो रहा है ।

सियासी दलों की अगर बात करें तो बुन्देलखण्ड की इस महत्वपूर्ण सीट पर बहुत कुछ ठीक नही है और ऐसे में ये प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या सियासत और सिस्टम का वास्तविक मुद्दों से कोई वास्ता नही है ? क्या मौजूदा राजनीति जनता के हितों की पूर्ति के लिए नही बल्कि अपने निजी स्वार्थों के हो रही है ?

फिलहाल तो इस चुनाव की स्थिति स्पस्ट नही लेकिन अगले 72 घण्टों में चुनाव तेजी से बदलने की पूरी उम्मीद है और कई बड़े नाटकीय सियासी घटनाक्रम भी देखने को मिल सकते हैं । कल प्रियंका गांधी और अमित शाह आ रहे हैं लेकिन बावजूद इसके संसदीय क्षेत्र में खामोशी है और फिर अगले दिन अखिलेश यादव के आने की बात सामने आ रही है ।

ऐसे में इन नेताओं द्वारा छोड़े गए विशेष तरह के सियासी बाणों से चुनाव का रुख बदलने की पूरी उम्मीद है लेकिन वो भी मुद्दों पर नही बल्कि वादों और आपसी खींचतान पर ।

रिपोर्ट- अनुज हनुमत
  

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