स्पेशल रिपोर्ट - ये चित्र कहीं राम के आने के संकेत तो नही !


प्रथम दृष्टया चित्रों को देखकर लगता है मानो ये चित्र भर नहि बल्कि उस समय भगवान राम के आने के संकेत हैं । इन हजारो वर्ष पुराने चित्रों में धनुष बाण लिए अदम्य साहस का परिचय दे रहे कई योद्धा दिख रहे हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट में पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही युवा पत्रकार अनुज हनुमत की टीम को आम जनमानस का जबरदस्त सहयोग मिल रहा है । आपको बता दें कि इससे पहले इस टीम की मुहीम पर ही पाठा के खम्भेश्वर पहाड़ी में स्थित हजारो वर्ष पुराने शैलचित्रों को यूपी सरकार ने सरंक्षित करने के निर्देश दिये हैं । पाठा के सरहट में मिले चित्रों से मऊ के ऋषियन में चित्र कहीं ज्यादा समृद्धशाली हैं । जी हां भूरा दाई की पथरी मे प्रागैतिहासिक काल के शिलाचित्र मिलने से एक बार फिर हड़कम्प मच गया है । ग्रामीणों और युवाओं की जागरूकता से ये मुमकिन हुआ । मऊ तहसील के पूरब-पताई ग्राम के निकट ऋषियन आश्रम के जंगल में चाँदाटाक की चोटी के नीचे प्रागैतिहासिक काल के शिलाचित्र मिले हैं । शशीकान्त सिंह,दिनेश कुमार,हेमराज सिंह,संदीप उपाध्याय,अनुपम सिंह,कपिल सिंह,रूद्र प्रताप सिंह,दल प्रताप सिंह ,अखिलेश सिंह(एडो०) एवं अर्जुन जैसे लगभग एक दर्जन युवाओं की टीम ने इन चित्रों के लिए पहल की । अनुज हनुमत की अगुवाई में टीम ने जंगल में पूरे दिन भ्रमण किया और चाँदाटाक की चोटी चढ़ते समय नीचे उन्हें शिलाओं से होकर गुज़रना पड़ा जहाँ जाकर पता चला कि गेरुए रंग से चित्रित दृश्य जो भीमबेटक़ा,होशंगाबाद,पंचमढ़ी,उत्तर-प्रदेश के मिर्ज़ापुर से प्राप्त चित्रों के समान हैं। यहाँ एक चित्र में पालतू हथिनी की मदद से आखेट का दृश्य बड़ी ही सजीवता से चित्रित किया गया है। यहाँ की सभी शिलायें पूर्ण रूप से गेरुए रंग से चित्रित हैं जो पूर्ण रूप से प्रागैतिहासिक चित्र हैं। स्थानीय लोगों से बात करके पता चला कि उस जगह को भूरा दाई की पथरी नाम से लोग जानते हैं और लोगों ने यह भी बताया की पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी दी गयी थी किंतु वहाँ कोई संरक्षण नही प्रदान किया गया ।




यहाँ एक चित्र में पालतू हथिनी की मदद से आखेट का दृश्य बड़ी ही सजीवता से चित्रित किया गया है। यहाँ की सभी शिलायें पूर्ण रूप से गेरुए रंग से चित्रित हैं जो पूर्ण रूप से प्रागैतिहासिक चित्र हैं। स्थानीय लोगों से बात करके पता चला कि उस जगह को भूरा दाई की पथरी नाम से लोग जानते हैं और लोगों ने यह भी बताया की पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी दी गयी थी किंतु वहाँ कोई संरक्षण नही प्रदान किया गया ।यह भारत की प्रागैतिहासिक काल की धरोहर है अगर इसको भी पुरातत्व विभाग संरक्षण प्रदान करे तो भविष्य में यह एक सुंदर पर्यटक स्थल का रूप लेकर चित्रकूट जिले की सौंदर्यता को और सौन्दर्य बना देगा। कोटरा गांव के इर्दगिर्द कई छोटी छोटी पहाड़ियों में से एक है सुगरिया पथरी। इस पहाडी में हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों के बनाये गए शैल चित्र बिखरे पड़े हैं। पुरातात्विक महत्व के इन स्थलों तक अभी सरकार की नजरें नहीं पहुंच पाई हैं। सौ प्रतिशत प्राकृतिक इन स्थलों में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सरकार को कोई कार्य योजना बनाकर नहीं भेजने से फिलहाल ये स्थल अभी विकास से कोसों दूर और पब्लिक ट्रासपोर्ट की कोई व्यवस्था न होने के कारण लोगों की पहुंच से दूर हैं।




पुरातत्व विभाग मात्र बोर्ड लगाकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहा है। किसी टूरिस्ट गाइड के भी न होने के कारण यहां आये लोगों को इस स्थल के तमाम पहलुओं की जानकारी नहीं मिल पाती है । उप्र और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती इस भूभाग में अगर पुरातात्विक खुदाई करवाई गई तो शायद देश के सर्वाधिक प्राचीनतम नगर मिल सकते हैं। वे कहते हैं कि वेदों और पुराणों के अनुसार चित्रकूट के सतयुग, त्रेृता युग, द्वापर युग और सतयुग में होने के प्रमाण मिलते हैं। उन्होंने कहा कि पुरातत्व विभाग ने अब चित्रकूट में पुरातात्विक सर्वे की घोषणा है वैसे यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिये था।

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