आर्थिक विकास की होड़ में दयनीय होती ग्रामीण भारत की तस्वीर
आजादी के बाद पहली बार करवाई गई सामाजिक,आर्थिक और जाति आधारित जनगणना 2011 की शुक्रवार को जारी की गयी नई रिपोर्ट में आर्थिक विकास की होड़ में शामिल भारत के ग्रामीण इलाकों की बेहद दयनीय तस्वीर उभरकर सामने आई हैं । आंकड़ो के मुताबिक आजादी के सात दशक बाद भी ग्रामीम क्षेत्र की आधी से अधिक आबादी अब भी खेतिहर मजदूर है । उन्हें साल भर की बजाय सिर्फ फसलो में ही काम मिलता है ।इतना ही नही 5.37 करोड़ यानी 29.97 फीसदी परिवार भूमिहीन हैं और मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं । विशाल ग्रामीण आबादी में महज ढाई करोड़ लोग ही सरकारी ,सार्वजनिक क्षेत्र या निजी यानी की संगठित क्षेत्र में नौकरी करते हैं । आंकड़ो की माने तो 2.37 करोड़ परिवार एक कमरे के कच्चे मकान में रहते हैं और 4.08 लाख परिवार कूड़ा बीन कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं । स्थिति तब और बदतर दिखती है जब आंकड़ें बताते हैं की 11% ग्रामीण परिवार दयनीय स्थिति में जीवन जी रहे हैं और 6.68 लाख लोग भीख मांगकर अपना परिवार चलाते हैं । ये सारे आंकड़े 2011 की जनगणना पर आधारित हैं पर एक सच्चाई ये भी है की ठीक 80 साल के बाद इस बार देश में कराइ गयी जाति आधारित जनग